यदि मैं वानर होता
यदि मैं कोई वानर होता।
पेड़ों पर मेरा घर होता।।
उछल – कूद मैं करता दिन भर,
भीग मेह में मैं तर होता।
खम्भा पकड़ हिलाता भारी,
सबल देह मेरा कर होता।
इस डाली से उस डाली पर,
खाता दल फल वनचर होता।
कोई मुझे खिलाता केले,
नर – नारी का मैं डर होता।
मंदिर में बेधड़क घूमता,
मैं हनुमत का अनुचर होता।
‘शुभम्’ न बंधन होते इतने,
मनुज नहीं यदि बंदर होता।
— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम्’