सामाजिक

लयानंद

सम्पूर्ण ब्रह्मांड एक सुनिश्चित लय में आबद्ध है।ब्रह्मांड की इस लय में किंचित मात्र व्यवधान आने पर लय भंग हो जाती है।लय के भंग होने पर अनेक व्यवधान उत्पन्न होने लगते हैं। जहाँ लय है, वहीं आनन्द है। आनन्द ही परम आनन्द है।परम् आनन्द ही ब्रह्म का इतर नाम है। इसलिए ब्रह्मांड तथा जगत के कण -कण के लिए लय की अनिवार्यता है।लय नहीं ,तो कुछ भी नहीं।इसलिए प्रकृति ने ब्रह्मांड की प्रत्येक भौतिक वस्तु को,जो चर हो या अचर; एक सुनिश्चित लय में आबद्ध कर दिया है।

गीत संगीत से अपनी बात प्रारंभ करते हैं;तो पाते हैं कि गीत या संगीत को गाते अथवा बजाते समय उसमें एक विशेष आरोह अवरोह होता है , तभी वह श्रोता को आनन्द प्रदान करते हुए उसे उसमें डूब जाने के लिए ,खो जाने के लिए लीन कर देता है। यह डूबना या खोना ही सिद्ध करता है कि किसी गीत या संगीत में डाली गई विशेष लय ही उसके लिए उत्तरदाई है।प्रातः सूरज का उगना, कलियों का पुष्प बनकर खिलना,नदियों का कलरव करते हुए अनवरत बहना, पर्वतों पर सफेद तुहिन का पात होना, हवा का अपनी लय में वृक्षों की शाखाओं और पत्तियों को हिलाना, भौरों का फूलों पर गुंजारना, तितलियों का उद्यानों में इधर से उधर भ्रमण करना, रात्रि में श्यामल गगन मंडल को आच्छादित करते हुए तारों का चमकना, चंद्रमा का अपनी चंद्रिका को प्रसारित करना,चिड़ियों का चहचहाना, फूलों का महकना, सूरज का दोपहरी में दहकना,संध्या काल में अपने सौम्य रूप में अस्ताचल को गमन, धरती का अनवरत घूर्णन आदि प्रकृति का कण – कण लय से आबद्ध है।

मानव देह पर दृष्टिपात करने पर विदित होता है कि उसमें प्रत्येक अंग प्रत्यंग में निश्चित लय है। उस लय से भले ही हम अनिभिज्ञ हों, किंतु वह अनवरत और आजीवन चलती रहती है।जैसे हृदय का स्पंदन,भोजन का पाचन, रक्त का संचरण, युगल वृक्कों द्वारा रक्त का छनन और मूत्रादि का उत्सर्जन,श्वास का प्रतिक्षण आवागमन, पलकों का झपकन, श्रवणों द्वारा श्रवण, चरणों का चलन, केश और नखों का निरन्तर बढ़ना आदि देह की गतिविधियों का बहुविध रूप अपनी -अपनी लयात्मकता के परिणाम स्वरूप ही तो हैं। यही स्थिति समस्त देहधारियों की देह में लय का संगीत गुंजाती है।

जब वात पित्त कफ़ की लय में व्यवधान आता है ,देह को किसी न किसी रोग के द्वारा घेर लिया जाता है। तब देह की लय भंग ही हो जाती है। हमारी साँसों का सरगम ही हमारा जीवन है। जब उसकी लय टूटती है, जीवन का संगीत भी टूट जाता है। जहाँ लय नहीं है ,वहाँअनेक रोग,प्रचंड तूफान,भूचाल,बाढ़ ,अति वृष्टि,भीषण अकाल, झगड़े -फसाद,युद्धों की विभीषिका,महायुद्ध, दुर्घटना, आगजनी,ग्रह कलह, सामाजिक वैषम्य, वैमनस्य औऱ इसी प्रकार के अनर्थ उत्पन्न होते हैं। सृष्टि, समाज, वन ,उपवन, देह सभी में लय-भंजन अशुभ को ही आहूत करता है। इसलिए लय – भंजन की इस विषम स्थिति से जितना भी संभव हो , प्रत्येक व्यक्ति को बचने का प्रयास करना चाहिए।जो समरसता लय की बद्धता में है, वह एक मुक्ति की अवस्था है।

प्रकृति में सभी को उसका आनन्द प्राप्त करने का अधिकार है। इसके विपरीत देश समाज और विश्व में ऐसे भी अपात्र हैं ,जिनके लिए लय -भंजन ही लयानंद है।जैसे सर्प को डँसने में, बिच्छू को डंक मारने में, प्राणहंता को प्राण हरण में आनंद आता है, वह एक अप्राकृतिक कुकृत्य ही है। वह समाज और प्रकृति दोनों को अस्वीकार्य ही है।बीन की लय पर झूमता हुआ कोबरा नाग जानता है कि लय का क्या मूल्य है। हम सभी को अपनी – अपनी लय को जानना पहचानना है। तभी मानव देह में जन्म लेकर जीवन को सार्थक बनाने में लयात्मकता को शुभतम बना सकते हैं। जब जीवन की लय प्रलय में बदल जाती है ,तो वहीं पर समस्त आनन्द का विलय हो जाता है।जीवन आनन्द का निलय है,उसे लयबद्ध ही रखें। लयानंद ही जीवन है। जीवन की सार्थकता है।

— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम्’ 

*डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

पिता: श्री मोहर सिंह माँ: श्रीमती द्रोपदी देवी जन्मतिथि: 14 जुलाई 1952 कर्तित्व: श्रीलोकचरित मानस (व्यंग्य काव्य), बोलते आंसू (खंड काव्य), स्वाभायिनी (गजल संग्रह), नागार्जुन के उपन्यासों में आंचलिक तत्व (शोध संग्रह), ताजमहल (खंड काव्य), गजल (मनोवैज्ञानिक उपन्यास), सारी तो सारी गई (हास्य व्यंग्य काव्य), रसराज (गजल संग्रह), फिर बहे आंसू (खंड काव्य), तपस्वी बुद्ध (महाकाव्य) सम्मान/पुरुस्कार व अलंकरण: 'कादम्बिनी' में आयोजित समस्या-पूर्ति प्रतियोगिता में प्रथम पुरुस्कार (1999), सहस्राब्दी विश्व हिंदी सम्मलेन, नयी दिल्ली में 'राष्ट्रीय हिंदी सेवी सहस्राब्दी साम्मन' से अलंकृत (14 - 23 सितंबर 2000) , जैमिनी अकादमी पानीपत (हरियाणा) द्वारा पद्मश्री 'डॉ लक्ष्मीनारायण दुबे स्मृति साम्मन' से विभूषित (04 सितम्बर 2001) , यूनाइटेड राइटर्स एसोसिएशन, चेन्नई द्वारा ' यू. डब्ल्यू ए लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड' से सम्मानित (2003) जीवनी- प्रकाशन: कवि, लेखक तथा शिक्षाविद के रूप में देश-विदेश की डायरेक्ट्रीज में जीवनी प्रकाशित : - 1.2.Asia Pacific –Who’s Who (3,4), 3.4. Asian /American Who’s Who(Vol.2,3), 5.Biography Today (Vol.2), 6. Eminent Personalities of India, 7. Contemporary Who’s Who: 2002/2003. Published by The American Biographical Research Institute 5126, Bur Oak Circle, Raleigh North Carolina, U.S.A., 8. Reference India (Vol.1) , 9. Indo Asian Who’s Who(Vol.2), 10. Reference Asia (Vol.1), 11. Biography International (Vol.6). फैलोशिप: 1. Fellow of United Writers Association of India, Chennai ( FUWAI) 2. Fellow of International Biographical Research Foundation, Nagpur (FIBR) सम्प्रति: प्राचार्य (से. नि.), राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय, सिरसागंज (फ़िरोज़ाबाद). कवि, कथाकार, लेखक व विचारक मोबाइल: 9568481040