दर्द तो बुहत छलका दिल से – मगर अश्क बहे ही नही आँखों से
चराग़ ग़म के तो बुहत जले – मगर आहें निकली ही नही दिलों से
ख़्याल आप की मुहबबत के हमेशा – छाए ही रहे हमारे ज़हन पर
रंग रूप भी बुहत बदले ज़माने के – मगर अहसास आप के गए नही दिलों से
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धूप बदली और छाओं भी बदली – सूरज के चमकने के साथ साथ
चाँदनी चाँद की भी आई आसमान में – मगर आहें निकली ही नही दिलों से
बे ख़ुदी अैसी छाई है हमारे ज़हन पर – गुम हो गैए हम अपने ही आप में
यादें ताज़ा हो गैईं हमारी ज़िन्दगी की – बस गैए और भी आप ख़्यालों में
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ना चाहते हूए भी आ गैए हैं हम – आप की महफ़िल में तो हज़ूर मगर
मद होश हुए ही नही हम पीकर – शराब इस क़दर साक़ी के हाथों से
खाई क़सम भी हम ने महफ़िल में – पिएं गे नही हम शराब उम्र भर
फिर भी बुहत बार पी गए हम शराब – पिलाई जब भी साक़ी ने आँखों से
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चाह कर आपको हम ने फिर कभी – चाहा ही नही किसी और को मदन
चार दिन की इस छोटी सी ज़िन्दगी में – चाहने को कुछ रह भी गया नही
चुरा कर दिल हमारा हम से आप ने – दीवाना बना दिया है हम को दुनिया में
दिल हमारे को निशाना बना दिया है – आप ने अपनी नशेली आँखों से