गज़ल
इस बेदर्द ज़माने में दिल को दिल से मिलाए कौन
हर कोई गम में डूबा है गीत खुशी के गाए कौन
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इश्क-मुहब्बत की रस्में या प्यार-वफा की कसमें हों
बर्बादी के रस्ते हैं सब पर तुमको समझाए कौन
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मेरे गाँव में सुख-दुख में सब साथ में हँसते रोते हैं
तेरे शहर में खबर नहीं कि हैें अपने हमसाए कौन
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चेहरे पर मुस्कानें झूठी और आस्तीन में खंजर हैं
कैसे पता चलेगा हमको अपने कौन पराए कौन
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खुदा के घर भी तब जाएँगे जब वो हमें बुलाएगा
बिना बुलाए खुद सोचो फिर तुमसे मिलने आए कौन
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कितने लफ्ज़ अभी भी मेरे जेहन में बिखरे रहते हैं
तरतीब मगर उनको देकर अब गज़लें नई बनाए कौन
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आभार सहित :- भरत मल्होत्रा।