गुलशन
पूरवाई हवा युँ बह कर आई
गुलाब कली चमन में शरमाई
मधुकर ने दिया मुस्कान
सज कर आया नया विहान
बगिया महक उठी खुशबू से
शोर है चिड़ियों की गुफ्तूगू से
बादल ने ली गगन पे अंगड़ाई
श्रृगार कर बसंत बहार है आई
फूल खिले हैं गुलशन गुलशन
रंग बिरंगा सज गई है चमन
साया झुरमुट में दौड़ लगाई
बगिया बगिया चली पुरवाई
झील के तल पर दो हंस का जोड़ा
संग संग तैर रहा है निगोड़ा
जन्म जन्म का साथी है दोनों
एक दुजै के दिल में है इस जन्म में
साथ है जीना साथ साथ है मरना
सात जन्मों तक संग है चलना
झूम उठा मन सावन है आई
गुलशन गुलशन चली पुरवाई
सरसों के ये फूल हैं कितने निराले
छोटे छोटे रंग है पीले पीले
डालियाँ इनके डोले हौले हौले
समझ गया जीवन के हिचकोले
— उदय किशोर साह