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दर्शनीय अवंतिकापुरी (उज्जैन)

उज्जैन में प्रसिद्ध महाकाल समीप महाकाल लोक में भगवान शिव और उनके पूरे परिवार की प्रतिमाओं को स्थापित किया गया है। यहां भगवान शिव की लीलाओं का वर्णन करती छोटी-बड़ी करीब 200 मूर्तियां लगाई गई है| भगवान शिव ने किस तरह राक्षस त्रिपुरासुर का वध किया था, इसका वर्णन यहां एक विशाल प्रतिमा के जरिए किया गया है.महाकाल लोक में 108 विशाल स्तंभ बनाए गए हैं.|इन पर भगवान शिव जी , पार्वती जी  समेत उनके पूरे परिवार के चित्र उकेरे गए हैं| ये चित्र मूर्तिया जिनमें शिव, पार्वती, गणेश और कार्तिकेय की लीलाओं का वर्णन है.यहां 108 स्तंभों में भगवान शिवजी का तांडव, शिव स्तम्भ, भव्य प्रवेश द्वार पर विराजित नंदी की विशाल प्रतिमाएं मौजूद हैं|
मध्य प्रदेश की तीर्थ नगरी उज्जैन में हर साल लगभग एक करोड़ से अधिक श्रद्धालु आते हैं.| सुंदर भव्य महाकाल लोक से उज्जैन में पर्यटन भी तेज होगा| अवंतिका पुरी में धर्म की नगरी,साहित्य की नगरी,प्रेम की नगरी,नृत्य, संगीत की नगरी,ज्योतिष,गणनाओं की नगरी,सौंदर्य की नगरी आदि भाव समाहित है।देवताओं और अपने अपने आराध्यों का ऐसा चुम्बकीय आकर्षण जिसके आगे हर कोई नतमस्तक हो जाता है।नो रत्नों के नाम से गलियों के नाम है।
कृष्ण सुदामा पढ़ते वो सांदीपनि आश्रम,महाकाल,गढ़कालिका,काल भैरव,सिद्ध वट, मंगलनाथ,सन्तोषीमाता, चिंतामन गणेश, रामघाट,गोपाल मंदिर,हरसिद्धि मंदिर, राजा भर्तहरि, दत्तअखाड़ा, शनिमंदिर, आदि धर्म के ऐसे मंदिर जहाँ आप सुकून पा सकते है।सर्प उद्यान, यंत्र महल,कालियादेह पैलेस,भैरव गढ़ प्रिंट,इस्कॉन मंदिर, टॉवर आदि इतना कुछ देखने का है यदि देखे तो एक सप्ताह लग सकता है।अभिनय और काव्य की नगरी में कर्क रेखा भी ग्राम डोंगला के ऊपर से जाती  है।जहाँ 21 जून को दोपहर में परछाई विलुप्त हो जाती है।प्राचीन ग्रन्थों में अवंतिकापुरी के गाथाएं लिखी हुई है। अवंतिका पुरी(उज्जैन) सिंहस्थ, बाबा महाकाल के ज्योतिर्लिंग विश्व प्रसिद्ध है। उज्जैन की मेहंदी,कंकू भी प्रसिद्ध है।यहाँ के हर स्थान की अपनी खासियत है जिसका उल्लेख पुराणों में भी पढ़ने को मिलता है।धार्मिक नगरी में क्षिप्रा नदी का अपना महत्व है।दर्शनीय स्थलों के दर्शन से पुण्य फल की प्राप्ति होती है।  प्राचीन ग्रंथों में उल्लेख है अवंतिकापुरी श्रीकृष्ण की शिक्षा स्थली रही है | कृष्ण अपनी बांसुरी से ब्रज सुंदरियों  के मन को हर लेते थे ।
भगवान के बंशीवादन की ध्वनि सुनकर गोपियाँ अर्थ ,काम और मोक्ष सबंधी तर्कों को छोड़कर इतनी मोहित हो जाती थी कि रोकने पर भी नहीं रूकती थी ।क्योकिं बाँसुरी की तान माध्यम बनकर श्रीकृष्ण के प्रति उनका अनन्य अनुराग ,परम प्रेम उनको उन तक खीच लाता था।सखा ग्वाल बाल के साथ गोवर्धन की तराई ,यमुना  तट  पर गौओ को चराते समय कृष्ण की बांसुरी की तान पर गौएँ व् अन्य पशु -पक्षी मंत्र मुग्ध हो जाते ।वही अचल वृक्षों को भी रोमांच आ जाता था । श्री कृष्ण ने कश्यप गोत्र सांदीपनि आचार्य से अवंतिपुर (उज्जैन )में शिक्षा प्राप्त करते समय चौसठ कलाओं (संयमी शिरोमणि ) का केवल चौसठ दिन -रात में ही ज्ञान प्राप्त कर लिया था। उन्हीं चौसठ कलाओं में से वाद्य कला के अन्तर्गत गुरु ज्ञान के द्धारा सही तरीके से बांसुरी वादन का ज्ञान लिया था| दर्शनीय स्थल में दर्शन का लाभ लेना चाहिए.
— संजय वर्मा”दॄष्टि”

*संजय वर्मा 'दृष्टि'

पूरा नाम:- संजय वर्मा "दॄष्टि " 2-पिता का नाम:- श्री शांतीलालजी वर्मा 3-वर्तमान/स्थायी पता "-125 शहीद भगत सिंग मार्ग मनावर जिला -धार ( म प्र ) 454446 4-फोन नं/वाटस एप नं/ई मेल:- 07294 233656 /9893070756 /[email protected] 5-शिक्षा/जन्म तिथि- आय टी आय / 2-5-1962 (उज्जैन ) 6-व्यवसाय:- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग ) 7-प्रकाशन विवरण .प्रकाशन - देश -विदेश की विभिन्न पत्र -पत्रिकाओं में रचनाएँ व् समाचार पत्रों में निरंतर रचनाओं और पत्र का प्रकाशन ,प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक " खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा -अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के 65 रचनाकारों में लेखनीयता में सहभागिता भारत की और से सम्मान-2015 /अनेक साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित -संस्थाओं से सम्बद्धता ):-शब्दप्रवाह उज्जैन ,यशधारा - धार, लघूकथा संस्था जबलपुर में उप संपादक -काव्य मंच/आकाशवाणी/ पर काव्य पाठ :-शगुन काव्य मंच