कविता

बेटियाँ

व्रत ,पूजा ,उपवास ,कथा
करती चली आ रही है सदियों से
कब सोचा कुछ भी अपने लिए
फिर भी सवाल उठते रहे
कभी दीवारों पर सतिये बना
कभी जमीन पर गेरू से लिपकर
माँगती रही दुआएँ सबके लिए
फिर भी अर्थपूर्ण दृष्टि गड़ती रही
क्या दोष था उसका बेटा न होने का
लोगों के ताने सहती रही
मंदिरों में मन्नत माँगती रही
जैसे सारा दोष उसी का था
बेटियाँ न होती तो किसे माँ कहते तुम
कलाई पर कौन राखी बांध पाता
कौन करता व्रत पूजा उपवास तुम्हारे लिए
करवा चौथ ,अघोई अष्टमी
सब तुम्हारे लिए ही तो हैं
फिर बेटी होना अपराध कैसे हुआ
सुन रहे हो न ध्यान रखना अब
बेटियाँ जब तक तुम्हारे पास हैं
उनका ख्याल रखना
क्योंकि उनका ख्याल रखने वाला
और कोई नहीं सिर्फ तुम ही हो
वो नहीं जीती अपने लिए
समर्पित हैं सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे लिए
— वर्षा वार्ष्णेय

*वर्षा वार्ष्णेय

पति का नाम –श्री गणेश कुमार वार्ष्णेय शिक्षा –ग्रेजुएशन {साहित्यिक अंग्रेजी ,सामान्य अंग्रेजी ,अर्थशास्त्र ,मनोविज्ञान } पता –संगम बिहार कॉलोनी ,गली न .3 नगला तिकोना रोड अलीगढ़{उत्तर प्रदेश} फ़ोन न .. 8868881051, 8439939877 अन्य – समाचार पत्र और किताबों में सामाजिक कुरीतियों और ज्वलंत विषयों पर काव्य सृजन और लेख , पूर्व में अध्यापन कार्य, वर्तमान में स्वतंत्र रूप से लेखन यही है जिंदगी, कविता संग्रह की लेखिका नारी गौरव सम्मान से सम्मानित पुष्पगंधा काव्य संकलन के लिए रचनाकार के लिए सम्मानित {भारत की प्रतिभाशाली हिंदी कवयित्रियाँ }साझा संकलन पुष्पगंधा काव्य संकलन साझा संकलन संदल सुगंध साझा संकलन Pride of women award -2017 Indian trailblezer women Award 2017