जीवन का सफर
ना तेरा है ना मेरा है
ये जग अनजान बसेरा है
ना तुँ रहेगा ना मैं रहुँगा
फिर किस बात की बखेड़ा है
ना जाति का बंधन
ना साथी का बन्धन
सब का एक ही अखाड़ा है
सूरज उगने से लेकर
सूरज डुबने तक
जीवन का यह बसेरा है
एक रहस्य बना दिल में है
रहस्य ही बन कर रह जायेगा
जीवन क्षण भर का सपना है
मन में जल कर बुझ जायेगा
आना है और लौट जाना है
पागल मन को समझाना है
रह जायेगें तेरे अनमोल वचन
जग में तेरे बोल बतलाना है
जो बोया है वो काटेगा
फिर अन्त में क्या पछताना है
— उदय किशोर साह