शब्द
जितना जरूरी बस, उतना बोलें
सोच विचार कर ही, मुंह खोलें
कभी कभी चुप, रहना ही अच्छा
सिर्फ मुस्करा दें, जुबां न खोलें ।
बोलने वालों को, ध्यान से सुनें
जांचें, परखें, फिर विश्लेषण करें
अच्छी बातों की, करें सराहना
नकारात्मकता को, है नकारना
अनर्गल बातों, से मुंह मोड़ लें
सोच विचार कर ही, मुंह खोलें ।
प्रभावी ढंग से, कहें बात अपनी
भाषा मर्यादित हो खुशबू वतन की
छलके विश्वास और इरादे हों नेक
सबका हो सम्मान, झलके विवेक
हो सत्य का सम्बल, शब्द अलबेले
सोच विचार कर, ही मुंह खोलें।।
दूसरों की भावना का ध्यान रखिए
कड़ुए वचनों से, बचकर ही रहिए
निकले हुए बोल, वापस न आते
ग्लानि से भरकर, ह्रदय अकुलाते
ताला जुबां का, सलीके से खोलें
सोच विचार कर, ही मुंह खोलें ।।
सच्ची और मीठी, बाते ही बोले
नाहक किसी का, दिल न टटोलें
अपनी उपलब्धियों के गुण न गाएं
उनकी खुशियों में शामिल हो जाएं
महफ़िल में जाएं, न बने बड़बोले
सोच विचार कर, ही मुंह खोलें।
जिंदादिली, खुशमिजाजी,अपनाएं
गैरों को भी अपना, दोस्त बनाएं
वाद- विवाद में, ले सहभागिता
करें ज्ञान संग्रह, न हिचकिचाएं
परेशानियों के, पिटारे न खोलें
सोच विचार कर, ही मुंह खोलें ।
जितना जरूरी, बस उतना बोलें
सोच विचार कर ही, मुंह खोलें।
— नवल अग्रवाल