कुमाऊं का कत्यूर कालीन ‘आदि बदरीनाथ’ का मंदिर
यह समूह तीन मन्दिरों को मिलाकर बना है, जिनमें प्रमुख मन्दिर भगवान विष्णु को समर्पित है. भगवान विष्णु की यहां पर बद्रीनाथ के रूप में पूजा होती है. गर्भगृह, अंतराल और मण्डप युक्त पूर्वाभिमुखी यह मन्दिर में वर्तमान में मंडप विहीन है. सामने से कुंभ-कलश और कपोट पटिका एवं उसके ऊपर शिखर दिखायी देता है.
मंदिर के शिखर में भूमि आमलक और कलश है. यहां स्थित काले पत्थर की विष्णु की मूर्ति की पूजा होती है. इस मूर्ति में पर अंकित सम्वत 1105 है. प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर मन्दिर निर्माण अवधि सन् 1048 शताब्दी ई. निर्धारित की गई है. परिसर में दो और लघु देवालय भी हैं जिनमें एक देवी लक्ष्मी को समर्पित है तथा दूसरा मूर्ति विहीन है. सभी मूर्तियां स्थानीय दुर्लभ ग्रीन ग्रेनाइट पत्थर से तैयार की गई हैं जो कत्यूरकालीन मूर्तिकला की देन है.
स्थानीय मान्यता के अनुसार मूल बदरीनाथ की सेवा के लिये कत्यूरकाल में कुमाऊं-गढ़वाल के गावों को गोद लिया गया था. इन गावों के जमींदार वर्ष की तीन फसलों में से एक को मूल बदरीनाथ भेजते थे. कुंवाली स्थित आदि बदरीनाथ के विषय में पुजारी अंबादत्त पाडे बताते हैं – मूल बदरीनाथ (गढ़वाल) की ही तरह आदि बद्रीनाथ में भी विशुद्ध अनाज यानी दाल व चावल के भोग एवं पूजा अर्चना का नियम बना हुआ है. आदि बदरीनाथ में पांडे और जोशी परिवार से 17 पुजारी हैं. इन पुजारियों की एक-एक सप्ताह के लिये नियमित पूजा के उद्देश्य से बारी लगती है.