पल दो पल जिंदगी
जिंदगी की कहानी
हो जाए कब खल्लास
नहीं कुछ इसका पता
चलते चलते
कब डगमगा कर
राहों में बिखर जाए
सुनने देखने वाले
बोल उठें
अरे यह क्या
कल ही तो मुलाकात हुई थी
गली के नुक्कड़ पर
हर प्रसाद पनवाड़ी की गुमटी पर
कह रहे थे यार
आजकल तुम चुना ज्यादा लगा रहे हो
चुना जरा पान में कम लगाया करो
जिसे देखो चुना लगाने में लगा हुआ है
तुमसे तो ऐसी उम्मीद न थी
कब से आ रहे हैं पनवा खाने
तुम्हारी गुमटी पर
पहली बार जब तुमने खिलाया था
बनारसी पान
किबाब लगा कर
पत्ते पर रख कर
दो सुपाड़ी के टुकड़े
और थोड़ा सा चुना
जर्दा के साथ