आओ इस दिवाली दिल में स्नेह के दीप जलाएं
दीपावली दीपों का त्योहार है और यही दीप हमारे तन मन में एक नई उम्मीद और आशा का संचार करते हैं ।जलते हुए दीपक हमारे मन में यह विश्वास उत्पन्न करते हैं कि उम्मीद कभी हारा नहीं करती और अंधकार के बाद प्रकाश अवश्य आता है अर्थात जीवन में हार कर नहीं बैठना चाहिए क्योंकि हार के बाद जीत निश्चित है। यह प्रकृति का नियम है। असफलता शब्द में ही सफलता छुपी हुई है इस बात को हमें भूलना नहीं चाहिए और अपने सार्थक प्रयासों द्वारा सदैव मुश्किलों पर विजय पाने का सतत प्रयास करना चाहिए ।जलते हुए दीये इस बात का द्योतक हैं कि जिस प्रकार एक दिया जल कर अपने आसपास प्रकाश लुटाता है ,रोशनी फैलाता है और अंधकार का हनन करता है; उसी प्रकार हमें भी अपने आसपास के वातावरण में सकारात्मक तरंगों को फैलाना चाहिए और नकारात्मकता को दूर रखना चाहिए। इस प्रकार की मानसिकता जब पूरे समाज में व्याप्त होगी तभी हमारा समाज और धीरे-धीरे हमारा विश्व उन्नति की राह पर अग्रसर होगा ,उसकी राह में रोडे बिछाने वाली नकारात्मक शक्तियां स्वत: समाप्त होने लगेंगी।
तो आइए ,क्यों ना इस दिवाली हम सभी मिलकर अपने मन के अंधकार को मिटाने का प्रयास करें और मन में आशाओं के दीप जलाएं, अपने मन की कलुषता को खत्म करें,दूसरों के प्रति हमारे मन में जो भी दुर्भाव किसी वजह से समा गया है उसे हमेशा हमेशा के लिए दूर कर आपसी सौहार्द को बढ़ावा दें और संबंधों की अहमियत को समझते हुए एक दूसरे के साथ प्यार प्रेम से रिश्तों को बनाकर रखें । स्मरण रहे ,व्यक्ति समाज की सबसे छोटी इकाई है और व्यक्ति जब अपने सभी संबंधों और रिश्तों को मजबूत बनाने लगता है तभी एक मजबूत, समर्थ और सशक्त समाज का निर्माण भी होने लगता है ।स्वस्थ ,समर्थ ,सशक्त नागरिक ही एक मजबूत राष्ट्र को विकसित राष्ट्र बनाते हैं।
वैसे तो किसी भी अच्छे काम की शुरुआत किसी भी दिन से की जा सकती है ,किंतु, चूंकि दिवाली पर्व आ रहा है और दिवाली से सुंदर अवसर दूसरा कोई नहीं हो सकता जब हम अपने आप को बदलने का अपने आप से वादा करें और अपने भीतर की गंदगी को ,अज्ञान रूपी अंधेरे को दूर करने के प्रयास करें। आपसी मतभेद और मनमुटाव अक्सर लोगों के बीच हो जाते हैं क्योंकि हम एक सभ्य समाज में रहते हैं और एक सभ्य समाज में बुद्धिजीवी वर्ग के बीच विचारों का मतभेद हो सकता है किंतु जब यह मतभेद तर्क वितर्क की श्रेणी से आगे बढ़कर कुतर्क और मनभेद में परिवर्तित होने लगता है तो समाज का ह्रास होने लगता है, समाज का विकास अवरुद्ध होने लगता है और प्रगति के सारे दरवाजे खुद-ब-खुद बंद होने लगते हैं।
इस प्रकार की स्थिति उत्पन्न न होने पाए, इसलिए इस दिवाली हम सभी को मिलकर प्रण लेना होगा, शपथ लेनी होगी कि हम अपने मन से वे सभी नकारात्मक भाव और प्रवृतियां निकाल कर सदा सदा के लिए बाहर फेंक देंगे जो किसी भी प्रकार से हमारे और हमारे समाज के लिए घातक हैं, हमारे विकास को अवरुद्ध करने वाली हैं और हमें एक दूसरे से जोड़ने की बजाय तोड़ने का कार्य करती हैं।
तो आइए, आज हम सभी मिलकर दीपावली के इस पावन पर्व को और भी अधिक सुंदर तरीके से मनाते हैं और सर्वप्रथम अपने आपसे प्रॉमिस करते हैं कि हम अपने संबंधों में सदैव ईमानदारी बरतते हुए समाज के सभी लोगों के उत्थान के लिए दिल से यत्न करेंगे , मुफलिसो और मजलूमों पर दया भाव रखेंगे तथा ऐसा कोई कार्य नहीं करेंगे जिससे दूसरों को परेशानी हो।साथ ही अपने मन से जाति, धर्म,संप्रदाय और अन्य किसी भी प्रकार की दुश्मनी का भाव ,ईर्ष्या ,द्वेष ,घृणा सदा सदा के लिए बाहर कर देंगे और अपने मन में सभी के लिए प्रेम की ज्योत जलाएंगे जिसकी रोशनी से न केवल हमारा जीवन प्रकाशमान होगा अपितु ,उस प्रकाश में पूरा विश्व आगे बढ़ने के मार्ग ढूंढेगा और मानवीयता एक बार पुन: जीवंत हो उठेगी। उस सूरत में समाज में कोई भी व्यक्ति स्वयं को समाज से कटा हुआ महसूस नहीं करेगा और सभी नागरिक आपसी प्रेमभाव और मेल मिलाप से रहते हुए जीवन यात्रा का आनंद लेंगे। सही मायने में इस प्रकार की दिवाली ही हमारे जीवन के सभी प्रकार के अंधकार को दूर कर पाएगी।
— पिंकी सिंघल