एक गाँधीवादी अपने घर पर पत्नी के साथ अकेला था और सोने की तैयारी कर रहा था। तभी एक आतंकवादी उसके घर में घुस आया और उसकी पत्नी के साथ छेड़छाड़ करने लगा। उसकी पत्नी डरकर पति की ओर देखने लगी कि मुझे बचाने के लिए यह कुछ करेगा।
गाँधीवादी उस आतंकवादी के पास आया और हाथ जोड़कर बोला- “कृपया मेरी पत्नी को छोड़ दो।”
यह सुनते ही आतंकवादी ने उसके एक गाल पर ज़ोर का तमाचा मार दिया। इस पर गाँधीवादी ने अपना दूसरा गाल भी उसकी ओर कर दिया और पत्नी को छोड़ने का फिर निवेदन किया। इस पर आतंकवादी ने उसके दूसरे हाल पर और ज़ोर का तमाचा जड़ दिया और उसकी पत्नी से बलात्कार करने के लिए तैयार होने लगा।
अपने दोनों गालों पर तमाचे खाकर गाँधीवादी का गाँधीवाद हवा में उड़ गया। उसने अपने आस-पास देखा, तो उसे लोहे का एक मूसल दिखाई दिया। उसने चुपचाप मूसल उठाया और पूरी ताक़त से बलात्कारी के सिर पर पीछे से दे मारा। इस प्रहार से बलात्कारी का सिर फट गया और वह चीख मारते हुए बेहोश हो गया।
गाँधीवादी समझ चुका था कि आतंकवादियों और बलात्कारियों को रोकने का यही सही उपाय है, क्योंकि जो मूसल से ही मानते हैं वे बातों से कभी नहीं मान सकते।