कविता

बदलाव

 

जीवन के हर हिस्से मेंं

बदलाव अवश्यंभावी है,

कभी चाहकर, कभी हारकर

बदलाव स्वीकारना  ही पड़ता है

तो कभी खुद भी बदलाव से

खुद ही नेह लगाना ही पड़ता है।

बदलाव प्रकृति का नियम है

जिसे हम आप चाहकर भी

नजरअंदाज नहीं कर सकते,

गुरुर मेंं यदि हम बदलाव से

यदि दो दो हाथ करने लगे तो

सिर्फ़ मुंह की ही खायेंगे और खिसियाऐंगे।

अच्छा है बदलाव की जब जरूरत हो

तब समय रहते महसूस कीजिए,

समय के साथ ही बदलाव के साथ

बदलाव भी कीजिए और

खुशी खुशी तालमेल कीजिए,

साथ ही यदि आप बदलाव चाहते हैं तो

पहले स्वयं से ही शुरुआत कीजिए,

बदलाव के साथ कदमताल कीजिए,

बदलाव का भी स्वागत, सम्मान कीजिए।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921