गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल “सुख की तमन्ना क्या करें”

आम, जामुन, नीम-शीशम, जल गये हैं आग में
कुछ कँटीले पेड़ ही अब, रह गये हैं बाग में

सुमन तो मुरझा गये हैं, सिर्फ काँटे ही बचे,
प्रीत पहले सी नहीं, अब तो रही अनुराग में

बढ़ रहे हैं आज जंगल, कंकरीटों के यहाँ
खेत घटते जा रहे हैं, उर्वरा भूभाग में

थक गया है हाथ-हाथी, आप आगे बढ़ रहा
कमल फिर भी खिल रहे हैं, आज दीन तड़ाग में

कंटकों की सेज पर, सुख की तमन्ना क्या करें
उम्र सारी कट गयी अब, सिर्फ भागम-भाग में

ताल जब बेताल हो तो, सुर भला कैसे सधे
खो गया संगीत देशी, शोर वाले राग में

लग रही अन्धेर नगरी, और चौपट काज है
खा रहे बदमाश काजू, विश्व के अनुभाग में

बाँटती ठण्डक सभी को, चन्द्रमा की चाँदनी
किन्तु दूषित हो रहा है, “रूप” अब तो दाग में
— डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’

*डॉ. रूपचन्द शास्त्री 'मयंक'

एम.ए.(हिन्दी-संस्कृत)। सदस्य - अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग,उत्तराखंड सरकार, सन् 2005 से 2008 तक। सन् 1996 से 2004 तक लगातार उच्चारण पत्रिका का सम्पादन। 2011 में "सुख का सूरज", "धरा के रंग", "हँसता गाता बचपन" और "नन्हें सुमन" के नाम से मेरी चार पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। "सम्मान" पाने का तो सौभाग्य ही नहीं मिला। क्योंकि अब तक दूसरों को ही सम्मानित करने में संलग्न हूँ। सम्प्रति इस वर्ष मुझे हिन्दी साहित्य निकेतन परिकल्पना के द्वारा 2010 के श्रेष्ठ उत्सवी गीतकार के रूप में हिन्दी दिवस नई दिल्ली में उत्तराखण्ड के माननीय मुख्यमन्त्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक द्वारा सम्मानित किया गया है▬ सम्प्रति-अप्रैल 2016 में मेरी दोहावली की दो पुस्तकें "खिली रूप की धूप" और "कदम-कदम पर घास" भी प्रकाशित हुई हैं। -- मेरे बारे में अधिक जानकारी इस लिंक पर भी उपलब्ध है- http://taau.taau.in/2009/06/blog-post_04.html प्रति वर्ष 4 फरवरी को मेरा जन्म-दिन आता है