गाय ही इस धरा पर साक्षात देव है
कार्तिक शुक्ल पक्ष की अष्टमी को गोपाष्टमी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन गौ का पूजन और अर्चन किया जाता है। कहा जाता है कि भगवानकृष्ण ने इसदिन से ही गौओं को चराना आरंभ किया था। इससे पहले वे केवल गाय के बछड़ों को ही चराया करते थे।
इस दिन गौ और उनके बछड़ों का श्रृंगार करके उनकी आरती उतारी जाती है।मानाजाता है कि गौ के शरीर में अनेक देवताओं का वास होता है। इस लिए गौ की पूजा करने से उन देवताओं की भी पूजा स्वत: हो जाती है। गौ की परिक्रमा भी लाभ देती है।
गोपाष्टमी महोत्सव गोवर्धन पर्वत से जुड़ा उत्सव है। गोवर्धन पर्वत को द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से लेकर सप्तमी तक गाय व सभी गोप-गोपियों की रक्षा केलिए अपनी एक अंगुली पर धारण किया था। गोवर्धन पर्वत को धारण करते समय गोप-गोपिकाओं ने अपनी-अपनी लाठियों का भी टिका दिया था,जिस का उन्हें अहंकार हो गया कि हमलोगों ने ही गोवर्धन को धारण किया है। उनके अहं को दूर करने के लिए भगवान ने अपनी अंगुली थोड़ी तिरछी की तो पर्वत नीचे आने लगा। तब सभी ने एक साथ शरणागति की पुकार लगायी और भगवान ने पर्वत को फिर से थाम लिया।
देवराज इन्द्र को भी अहंकार था कि मेरे प्रलयकारी मेघों की प्रचंड बौछारों को श्रीकृष्ण और उनके ग्वालवाल नहीं झेल पाएंगे।परंतु जब लगातार 7 दिनतक प्रलयकारी वर्षा के पश्चात् भी श्रीकृष्ण अडिग रहे, तब 8वें दिन इन्द्र की आंखें खुलीं और उनका अहंकार दूर हुआ।तबवह भगवानश्रीकृष्ण की शरण में आए और क्षमा मांगकर उनकी स्तुति की।
कामधेनु ने भगवान का अभिषेक किया और उसी दिन से भगवान का एक नाम ‘गोविंद’ पड़ा। वह कार्तिक शुक्ल अष्टमी का दिन था। उस दिन से गोपाष्टमी का उत्सव मनाया जाने लगा, जो अब तक चला आ रहा है।
इसदिन गायों को स्नान कराएं।गौ-माता के अंगोंमें मेंहदी,रोली,हल्दी आदि के थापे लगायें फिर तिलक करके पूजन करें व गो-ग्रास दें। गायों को अनुकूल हो ऐसे खाद्य पदार्थ खिलाएं,सातपरिक्रमा व प्रार्थना करें तथा गाय की चरणरज सिर पर लगाएं। इससे मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं एवं सौभाग्य की वृद्धि होती है, गौ-माता सृष्टि की पालक भी है।
गोपाष्टमी के दिन सायंकाल गायें चरकर जब वापस आएं तो उस समय भी उनका आतिथ्य, अभिवादन और पंचोपचार-पूजन करके उन्हें कुछ खिलाएं और उनकी चरणरज को मस्तक पर धारण करें, इससे सौभाग्य की वृद्धि होती है।
भारतवर्ष में गोपाष्टमी का उत्सव बड़े उल्लास से मनाया जाता है। विशेषकर गौशालाओं के लिए यह बड़े महत्व का उत्सव है। इसदिन गौशालाओं में एक मेला जैसा लग जाता है। गौ कीर्तन-यात्राएं निकाली जाती हैं। यह घर-घर व गांव-गांव में मनाया जाने वाला उत्सव है। इसदिन गांव-गांव में भंडारे किए जाते हैं।
गाय के महात्म्य के बारे में उत्तराखंड के प्रसिद्ध गौ कथा वाचक गोपालमणि महाराज की पुस्तक धेनु मानस में विस्तृत रुप से बताया गया है।
पूज्य गोपालमणि महाराज गाय को राष्ट्र माता घोषित करने के लिये प्रयास रत है तीन बार रामलीला मैदान दिल्ली में बडी रैलियां कर चुके है।
गाय ही इस धरा की लक्ष्मी है।
गाश्च शुश्रूषते यश्च समन्वेति च सर्वशः,
तस्मै तुष्टाः प्रयच्छन्ति वरानपि सुदुर्लभान्।
— कालिका प्रसाद सेमवाल