गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

तकदीर को तू अपनी बदलने का हुनर सीख
हालात की गर्मी से पिघलने का हुनर सीख
रुकने का तसव्वुर भी ना करना तू मुसाफिर
मंजिल को जो पाना है तो चलने का हुनर सीख
परवाना तो मर जाता है बे मौत ही जलकर
आ शम्मा की मानिंद तू जलने का हुनर सीख
 सीखा है अगर शाम को ढलने का सबक तो
सूरज की तरह सुबह उभरने का हुनर सीख
जीना है अगर शान से इस दौर में यारों
गिरने से जरा पहले संभलने का हुनर सीख
— नमिता राकेश