कविता – मुस्कान में मिठास की परछाई है
मुस्कान में मिठास की परछाई है
इस कला में अंधकारों में भी
भरपूर खुशहाली छाई है
स्वभाव की यह सच्ची कमाई है
मीठी जुबान का ऐसा कमाल है
कड़वा बोलने वाले का
शहद भी नहीं बिकता
मीठा बोलने वाले की
मिर्ची भी बिक जाती है
मुस्कान उस कला का नाम है
भरपूर खुशबू फैलाना उसका काम है
अपने स्वभाव में ढाल के देखो
फिर तुम्हारा नाम ही नाम है
मुस्कान में पराए भी अपने होते हैं
अटके काम पल भर में पूरे होते हैं
सुखी काया की नींव होते हैं
मानवता का प्रतीक होते हैं
— किशन भावनानी