सम्मान
अखिलेश जी आज बहुत खुश थे. उनके एक शिष्य को राज्य स्तर पर “कला-गौरव सनद” से सम्मानित किया जाना था.
“पापा, आपने कहा था कि हम आज कला प्रदर्शनी देखने चलेंगे.” सोनू ने याद दिलाया.
“जरूर, चलो सब लोग तैयार हो जाओ, ये दीपावली यादगार बनने वाली है!”
सोनू इसका अर्थ तो नहीं समझ सका, बहरहाल घूमने जाने की खुशी से ही झूम उठा.
“पापा ये खूबसूरत रंगीन दीये देख रहे हैं?” प्रदर्शनी देखते हुए सोनू ने पूछा.
“हां बेटा, वाकई ये दीये बहुत खूबसूरत हैं.”
“पापा, क्या हम इनमें से कुछ दीये खरीद सकते हैं?”
“जरूर, जो चाहिएं चुन लो.”
“कला शिक्षक अखिलेश जी को मंच पर आने के लिए आमंत्रित किया जा रहा है.” तभी एक घोषणा हुई. पापा का नाम सुनकर सोनू हैरान था.
अखिलेश जी सपरिवार मंच की ओर चले. बाकी सबको अपने लिए नियत अग्रिम पंक्ति की कुर्सियों पर बैठने का संकेत कर वे मंच की ओर अग्रसर हुए.
“आइए अखिलेश जी, आप ही अपने शिष्य को “कला-गौरव सनद” से सम्मानित कीजिए.” अब अखिलेश जी के हैरान होने की बारी थी!
मंच पर जाकर उन्होंने सुरेश को शाल पहनाकर “कला-गौरव सनद” की ट्रॉफी और पांच लाख रुपये के चेक से नवाजा.
“प्यारे दर्शकगण, क्या आप जानते हैं कि आज सुरेश को “कला-गौरव सनद” से क्यों सम्मानित किया जा रहा है? इसका श्रेय इनके कला शिक्षक अखिलेश जी को जाता है.” दर्शकों की प्रतिक्रिया देखने के लिए वे कुछ क्षण चुप रहे.
“इनका शिष्य सुरेश स्टटरिंग यानी हकलाने के कारण होते तिरस्कार और उपेक्षा से बहुत निराश हो गया था. अखिलेश जी ने अपनी सारी कला उंड़ेलकर इस शिष्य के स्वाभिमान को जगाकर इस लायक बनाया कि आज वह राज्य स्तर पर “कला-गौरव सनद” से सम्मानित किया जा रहा है. आपने प्रदर्शनी में जो कलात्मक दीये और अन्य कलाकृतियां देखीं, वे इन्हीं के निर्देशन में सुरेश द्वारा तैयार की गई हैं. इसी उपलक्ष में अखिलेश जी को भी “कला-गौरव शिक्षक” की सनद से नवाजा जा रहा है.”
सभागार तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा. दो जोड़ी आंखों में आंसू थे, एक की आंखों में कृतज्ञता के, दूसरे की आंखों में स्वाभिमान के सम्मान के.