क्या करोगे रावण जलाकर
लोभ,मोह,काम,क्रोध का किया नहीं विरोध,
बुराई के विरोध में क्यों रावण जला रहे हो?
द्वेष और पाखण्ड में लिप्त हुआ अंग अंग,
अच्छाई जिताने की बात क्यों सुना रहे हो?
जितनी बुराई यहां खुद में है भरी हुई,
उतनी बुराई न तुम रावण में पाओगे।
रावण तो जलता है हर साल पार्क में,
अंदरुनी रावण को कब तुम जलाओगे।
मन में ले आते मैल ,नारी देखी जैसे गैल,
रावण जैसी संयम शक्ति कब ला रहे हो?
लोभ,मोह,काम,क्रोध का किया नहीं विरोध,
बुराई के विरोध में क्यों रावण जला रहे हो?
नीतिज्ञ, बुद्धिमान, रावण सा सात्विक ज्ञान,
दशानन की अच्छाई से,मन खिल जाएगा।
शिव तांडव निर्माता,चारों वेदों का ज्ञाता,
सारे ब्रह्माण्ड में , कहीं ना मिल पाएगा ।
संस्कृति,संस्कृत सबको किया विस्मृत ,
पाश्चात्य अपनाकर,निज क्यों भुला रहे हो?
लोभ,मोह,काम,क्रोध का किया नहीं विरोध,
बुराई के विरोध में क्यों रावण जला रहे हो?
स्वरचित एवं मौलिक रचना।
प्रदीप शर्मा।