बिना वृक्ष संकटमय जीवन,मूल मंत्र ना समझ में आया भोग विलास में भूल गए थे,जीवन भर ना वृक्ष लगाया। जीवन भर ना वृक्ष लगाया,और वनों को काट रहे हैं ऑक्सीजन के लाले पड़ गए,तौल तौलकर बांट रहे हैं। बढ़ता प्रदूषण दिन प्रतिदिन,बिगड़ रही जीवन की काया भोग विलास में भूल गए थे,जीवन भर ना वृक्ष […]
Author: प्रदीप शर्मा
होली प्यार वाले रंग से
दिल ने ये कहा है दिल से, होली प्यार वाले रंग से। बढ़ती जाये बेकरारी, थोड़ा सा करार ले लो, होली आई रंगों वाली, हाथों में गुलाल ले लो। मैं भी दिल से होली खेलूं , तुम भी दिल से होली खेलो। दिल ने ये कहा है दिल से, होली प्यार वाले रंग […]
इश्क की इश्क से बात होने लगी।
इश्क की इश्क से बात होने लगी, दिन सुहाने हसीं रात होने लगी। वो नज़र से कभी दूर हटती नहीं इस कदर अब मुलाकात होने लगी। सिलसिला ए मुलाकात, चलता रहा , प्यार में दिल तड़पता, मचलता रहा। तेरी चाहत में छुपकर दबे पांव से, तुमसे कॉलेज बहाने मैं मिलता रहा। स्वरचित एवं मौलिक रचना। […]
लौटा दो मेरा बचपन।
बीते हुए वक्त में वापस, पुनः भेज दो हे! भगवन धन दौलत की चाह नहीं,बस लौटा दो मेरा बचपन। खेल-कूद मिट्टी में करना, पगडंडी पर आगे चलना छुपम छुपाई गिल्ली डंडे, खेल खेल में खूब झगड़ना। बात बात पर दोस्त मनाते, होने पर कोई अनमन धन दौलत की चाह नहीं,बस लौटा दो मेरा बचपन। […]
लड़कियों सीखो करना वार
तुम ही मात, पुत्री, भगिनी, सृष्टि का आधार, कब तक तुम खामोश रहोगी,सहोगी अत्याचार। लड़कियों हाथ गहो तलवार, लड़कियों सीखो करना वार। घर आंगन में खेली, मेरी नन्ही राजकुमारी मां बाप की गुड़िया रानी, भाई को जान प्यारी। घर से निकली तो रस्ते में ,हुआ है अत्याचार लड़कियों सीखो करना वार। कभी कर दिया चलती […]
तुम्हारे लिए।
प्यार दिल में है पाला, तुम्हारे लिए मैंने खुद को संभाला, तुम्हारे लिए। प्रेम की वो गली, तुम जहां थी मिली उस जगह डेरा डाला, तुम्हारे लिए। प्यार धरती पे आया, तुम्हारे लिए मुझको रब ने बनाया, तुम्हारे लिए एक तुम्हारे सिवा, कोई भाया नहीं खुद को तन्हा बनाया, तुम्हारे लिए। सारे जग से लड़ा […]
वतन के नाम कर जाऊं
मैं अपनी चंद सांसों को, वतन के नाम कर जाऊं। मैं अगले सात जन्मों तक, जन्म भारत में ही पाऊं। इसी की आन पर जीना, इसी की शान पर मरना, जिसे जग भूल ना पाए, कुछ ऐसा काम कर जाऊं। मैं अपनी चंद सांसों को……। गली,हर मोड़, नुक्कड़ पर, शहीदों की निशानी हो। हमारे गीत, […]
जीवन आकांक्षाओं का सागर
मृगतृष्णा से भरी हुई है, लोभ, मोह, और काम की गागर, इच्छाओं के वशीभूत हम,जीवन आकांक्षाओं का सागर। बचपन में मन शांत, कोई अभिलाषा न थी। खेल-कूद के सिवा, कोई जिज्ञासा न थी। बड़े बनेंगे, कुछ बड़ा करेंगे , सोच में बीते रैन और वासर। इच्छाओं के वशीभूत हम ,जीवन आकांक्षाओं का सागर। पर […]
क्या करोगे रावण जलाकर
लोभ,मोह,काम,क्रोध का किया नहीं विरोध, बुराई के विरोध में क्यों रावण जला रहे हो? द्वेष और पाखण्ड में लिप्त हुआ अंग अंग, अच्छाई जिताने की बात क्यों सुना रहे हो? जितनी बुराई यहां खुद में है भरी हुई, उतनी बुराई न तुम रावण में पाओगे। रावण तो जलता है हर साल पार्क में, अंदरुनी […]
जनसंख्या विस्फोट
तीव्र गति से घट रहे संसाधन सर्वत्र, जनसंख्या वृद्धि करे यत्र तत्र सर्वत्र। यत्र तत्र सर्वत्र शहर हैं भरे ठसाठस, गांवों में भी कष्ट झेलते हैं जन-मानस। खतरे में है जीव और ख़तरे में कुदरत, खेत हुए अदृश्य, हो रहीं दृश्य इमारत। वृक्ष काटकर बना रहे हैं कागज पत्तर, प्राणवायु घट रही हो रहा जीवन […]