गीतिका/ग़ज़ल

घर छोड़कर।

चार पैसों को कमाने चल दिए घर छोड़कर,

पेट की ज्वाला बुझाने चल दिए घर छोड़कर।

स्वर्ग सा घर छोड़ने का मन न रत्ती भर हुआ ,

ख्वाब को मंजिल दिखाने चल दिए घर छोड़कर ।

इस जमाने से मिले हैं दर्द मुफलिस के कई,

दर्द पर मरहम लगाने चल दिए घर छोड़कर ।

मात बूढ़ी घर अकेली याद करती है मुझे,

ज़िंदगी सुखमय बनाने चल दिए घर छोड़कर।

कर्म से किस्मत बदलती ये कहावत थी सुनी,

कर्म से किस्मत बनाने चल दिए घर छोड़कर।

प्रदीप शर्मा

आगरा, उत्तर प्रदेश