कुण्डली/छंद

मेरी अर्धांगिनी ।

अंधियारी ज़िंदगी में नूर बनकर आ गयी,

हर ग़ज़ल के शेर में मशहूर बनकर छा गयी।

बिन तुम्हारे ज़िंदगी में इश्क़ सूना था पड़ा,

जन्नतों को छोड़ घर में हूर बनकर आ गयी।

सात फेरों से हुई मेरी शुरू ये ज़िंदगी,

ज़िंदगी में ज़िंदगी दस्तूर बनकर आ गयी।

हर घड़ी हर मोड़ पर तुम साथ मेरे हो खड़े,

आप मेरी ज़िंदगी में सूर बनकर छा गयी।

(सूर- ख़ुशी)

— प्रदीप शर्मा

प्रदीप शर्मा

आगरा, उत्तर प्रदेश