लघुकथा

संबंधो में दीवार

      ट्रिन…ट्रिन…ट्रिन । मोबाइल की घंटी बज रही थी, मैं पूजा कर रहा था, श्रीमती जी ने फ़ोन उठाया और बात की।मैं पूजा से जब उठा तो देखा वो परेशान सी थीं। मैं कुछ पूछता तब तक उन्होंने शीला के बेटे से फोन पर हुई बातचीत दोहरा कर कहा – जल्दी कीजिए! हमें तुरंत वहां पहुंचना चाहिए।       मगर…..!       अगर मगर छोड़िए। पहले जो जरुरी है वो कीजिए। अगर दीदी को कुछ हो गया तो मैं खुद को माफ नहीं कर पाऊंगी। श्रीमती जी बोलते बोलते तो पड़ीं।     हम दोनों जल्दी से तैयार होकर अस्पताल पहुंचे। शीला का बेटा राजू श्रीमती जी के गले लगकर रोने लगा -मामी! मम् मम्..मी —-!श्रीमती जी ने उसके आंसू पोंछते हुए आश्वस्त किया – कुछ नहीं होगा मम्मी को,,अब हम लोग आ गए हैं न, तुम चिंता मत करो। सब ठीक हो जाएगा।मैंनें डाक्टर से मिलकर बात की तो उन्होंने तुरंत आपरेशन की सलाह दी। मैंने तुरंत सहमति दी और आपरेशन के लिए धनराशि काउंटर पर जमा करा दिया।     एक घंटे में शीला को आपरेशन थियेटर से बाहर लाकर वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया।     लगभग चार घंटे बाद शीला को होश आया, उसने जब श्रीमती जी को देखा तो चौंक गई।      भाभी—-आप यहां कैसे?       वो राजू ने फोन किया था ? आपके भैय्या के साथ आई हूं, अब आपको कुछ नहीं होगा।      शीला ने मेरा हाथ पकड़ा और सिसक पड़ी।मैंने उसके सिर पर हाथ फेरकर शांत रहने को कहा।       राजू के चेहरे पर संतोष का भाव था। लेकिन श्रीमती जी असमंजस में थीं। उन्होंने शीला से माफी मांगते हुए कहा-मुझे माफ कीजिए दीदी! आज जब राजू ने मुझे मामी कहा तब मुझे महसूस हुआ कि मैं भाई बहन ही नहीं मामा भांजे के संबंधों में दीवार बन रही हूं।       आप माफी मत मांगिए। इसमें आपका कोई दोष नहीं है। भैय्या ने जब मुझे छोटी बहन का दर्जा दिया, तो मैं खुद को रोक न सकी, मेरा कोई भाई भी तो नहीं है। और आज मेरे उसी मुंहबोले भाई ने अपनी बहन को उसकी जिंदगी ही उपहार में दे दिया।        हां दीदी मैं ही आप दोनों के संबंधों को समझ नहीं पाई। मुझे आप दोनों पर गर्व है। अब से हम से हम सबके संबंधों में कोई दीवार नहीं होगी।      दोनों गले मिलकर अपने मन का मैल और दर्द आंसुओं संग बहा रही थीं।  ……..और मैं राजू का हाथ पकड़ कर बाहर निकल आया।     

*सुधीर श्रीवास्तव

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