कविता

बीती ताहि बिसार दे

कहा जाता है
कि जीवन बढ़ने का नाम है,
फिर बीती बातों में उलझने का
भला क्या काम है?
जीवन है तो सुख दुख तो आते जाते रहेंगे,
कभी खुशी कभी ग़म के खेल भी चलते रहेंगे
पर बीती बातों को गांठ बांधकर
बैठने से भला क्या होगा?
अच्छा है इस कहावत को चरितार्थ कीजिए
बीती ताहि बिसार कर आगे की सुध लीजिए।
जीवन जीने का नाम है
इसे दलदल में न ढकेलिए,
हर समय एक सा नहीं होता
यह बात गांठ बांध लीजिए,
दिन रात, सुख दुख, अंधेरे उजाले का
क्रम तो चलता ही रहेगा।
इसलिए जीवन पथ पर आगे बढ़िया
वर्तमान संवारने का प्रयास कीजिए
भविष्य को खुशहाल बनाने का प्रयत्न कीजिए,
न कि बीती बातों में उलझकर
जीवन को नर्क बना लीजिए।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921