दीपक जलाएं मिलकर
अंधेरे में जो उजाला भर दे, चलो वो दीपक जलाएं मिलकर |
कलुश जो मन का मिटा दे सारा, वो ज्ञान दीपक जलाएं मिलकर |
घने तिमिर में न भय ग्रसित हों,न डगमगाएं क़दम हमारे |
करो कृपा ऐसी दीनबंधु ,घना अंधेरा मिटाएं मिलकर |
हो लाख बाधाएं रास्ते में, न रुकने पाएं कदम हमारे |
बुलंद हो हौसला हमारा,आ जिंदगी को सजाएं मिलकर |
जो नफरतों का हैं बीज बोते,उगा रहे फल हैं दहशतों का |
उठो सपूतों माँ भारती के ,वो वृक्ष हटाएं सारे मिलकर |
ये देश भारत है सबसे न्यारा ,यहां की मिट्टी है सबसे पावन |
बढाएंगे मान देश का हम कसम ये अपनी निभाएं मिलकर |
मृदुल उम्मीदों की रौशनी ने , जहाँ को रौशन सदा किया है |
हैं दीप हम रौशनी से अपनी, अँधेरे में पथ बनाएं मिलकर |
— मंजूषा श्रीवास्तव ‘मृदुल’