गीतिका/ग़ज़ल

दीपक जलाएं मिलकर

अंधेरे में जो उजाला भर दे, चलो वो दीपक जलाएं मिलकर |
कलुश जो मन का मिटा दे सारा, वो ज्ञान दीपक जलाएं मिलकर |

घने तिमिर में न भय ग्रसित हों,न डगमगाएं क़दम हमारे |
करो कृपा ऐसी दीनबंधु ,घना अंधेरा मिटाएं मिलकर |

हो लाख बाधाएं रास्ते में, न रुकने पाएं कदम हमारे |
बुलंद हो हौसला हमारा,आ जिंदगी को सजाएं मिलकर |

जो नफरतों का हैं बीज बोते,उगा रहे फल हैं दहशतों का |
उठो सपूतों माँ भारती के ,वो वृक्ष हटाएं सारे मिलकर |

ये देश भारत है सबसे न्यारा ,यहां की मिट्टी है सबसे पावन |
बढाएंगे मान देश का हम कसम ये अपनी निभाएं मिलकर |

मृदुल उम्मीदों की रौशनी ने , जहाँ को रौशन सदा किया है |
हैं दीप हम रौशनी से अपनी, अँधेरे में पथ बनाएं मिलकर |

— मंजूषा श्रीवास्तव ‘मृदुल’

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016