अंधेर नगरी, चौपट राजा
बचपन में एक कहानी पढ़ी थी।एक नगर का नाम था अंधेर नगरी और राजा का नाम था चौपट । हर वस्तु टके सेर मिलती थी। शासन व्यवस्था धूर्त,चापलूसों, और कान भरने वालों के हाथों में थी। राजा केवल मंत्रियों की हाँ में हाँ मिलाता था। कहानी का मतलब तो उस समय समझ नहीं आया पर कहानी अच्छी लगती थी सुनने में ,पढ़ने में।
आज जब उस व्यवस्था के बारे में सोचती हूँ तो कहीं न कहीं हर क्षेत्र में ऐसे व्यक्ति पाए जाएंगे जो सिर्फ अपना उल्लू सीधा करने के लिए किसी भी हद तक गुजर जाएंगे। अनुभवहीन,अयोग्य,यह इनकी विशेषता होगी,कार्य में निपुण तो ये बिल्कुल नहीं होंगे लेकिन हाँ बॉस के चमचे जरूर अच्छे बनेंगे।
एक कहावत है “अपना काम बनता, भाड़ में जाये जनता”।सुनी -सुनाई बातों पर विश्वास कर लेना ,योग्य व्यक्ति को कम आँकना, कार्य क्षेत्र में पदोन्नति के अवसर न देना,और उनके हर सही कार्य पर प्रश्न चिन्ह लगाना एक आम बात हो गयी है। मेरी भाषा में अगर कहें तो गधे-घोड़े एक हो गए हैं। पर विडंबना तो देखिए ऐसा बहुत ही कम देखा गया है कि हर व्यक्ति को उसकी योग्यता और अनुभव के आधार पर पारिश्रमिक और सम्मान मिलता हो। कार्य क्षेत्र का विस्तार दिन व दिन बढ़ता चला जा रहा है। निजी क्षेत्रों में वेतन और सुविधा बहुत कम है पर मजबूरी है लोगों की कम वेतन में कार्य करना। रोजगार का अभाव इसका सबसे बड़ा मुद्दा है।इसलिए जो जॉब मिले कर लो भैया कुछ तो मिलेगा।
अब यहाँ से प्रारंम्भ होता है दूसरों की टांग खींचने और उन्हें कभी अपने से ऊपर न बढ़ने देने का प्रयास।कुशल व्यक्ति में फिर कमियां निकाली जाएँगी, उसे मानसिक यातनाएं दी जाएँगी,और उसकी योग्यता पर सवाल उठाए जाएंगे। बिना पढ़े-लिखे नेता किसी भी प्रशासनिक अधिकारी का अपमान कर देते हैं, उनका तबादला कर दिया जाता है। ऐसे कई उदाहरण आपको हर कार्य क्षेत्र में देखने को मिल जाएंगे। आज का समय ये हो गया है कि आप सच को सच नहीं कह सकते। आप अपनी बात नहीं रख सकते। कभी -कभी आपकी निर्भीकता और स्पष्टता आपके लिए दुखदायी हो सकती है।
आज हर कार्य क्षेत्र में चमचागीरी और हाँजी-हाँजी करना जरूरी हो गया है।और अगर आपको आगे बढ़ना है तो कुछ कलाओं में आपको दक्ष होना चाहिए।अधिकारी की हाँ में हाँ मिलाना आना चाहिए, थोड़े लटके-झटके भी होने चाहिए,चौबीस घण्टे सेवा में हाजिर होने का गुण भी होना चाहिए।तभी आप एक सफल कर्मचारी कहलायेंगे।
हद तो तब होती है जब किसी सही को बलि का बकरा बना दिया जाता है और वह बेचारा बिना किसी कारण के शोषण का शिकार हो जाता है।
यहाँ कबीर जी का एक दोहा सार्थक सिद्ध हो रहा है-“कहत कबीर सुनो भई साधु ऐसा कलयुग आएगा,हंस चुगेगा दाना-दुनका, कौआ मोती खायेगा” इसलिए भैया किसी की पूँछ सीधी करने की बजाय अपनी पूँछ सम्भाल कर रखें और आँख, कान ,मुँह बंद रख अपना समय निकालें।
राम -राम
— सपना परिहार