ग़ज़ल
दी कभी ख़ुशियाँ, कभी बेहद रुलाया दोस्तो।
ज़िंदगी ने हर तरह का दिन दिखाया दोस्तो।
वक़्त ऐसा भी रहा जब ज़िंदगी दुश्मन लगी,
साथ इसने यार बनकर भी निभाया दोस्तो।
था बहुत गमगीन उस दिन, पर सुकूँ दिल को मिला,
एक बच्चा सामने जब मुस्कुराया दोस्तो।
झर गए पत्ते सभी, बस डालियाँ बाक़ी रही,
वक़्त आने पर शजर फिर लहलहाया दोस्तो।
आज तक अपना बहीखाता समझ पाया नहीं,
उम्र गुज़री, क्या कमाया, क्या गँवाया दोस्तो।
दर्द से तो किस तरह शिकवा करूँ, जब राह में
आख़िरी दम तक उसे हमराह पाया दोस्तो।
शायरी ‘बृजराज’ की सबकी पसंदीदा रही,
नाम लेकिन बज़्म में कम ही दिलाया दोस्तो।
— बृज राज किशोर ‘राहगीर’