गीतिका
श्रम करें तो गुजारा आज भी है ।।
मौसम सुहाना प्यारा आज भी है ।।
पनघटों पर घर बन गए लेकिन,
गांव में हमारे इनारा आज भी है।।
स्वच्छंद खेतों को जकड़ा है बाड़ों ने,
हरी फसलों का नजारा आज भी है ।।
डामर नें निगल लीं डीह की पगडंडियाँ,
किन्तु कागज पर घूरेतारा आज भी है ।।
बेटों से अधिक बेटियां पढ़ रहीं स्कूल में,
मगर बाप तो दहेज का मारा आज भी है।।
हलधर बन गए हैं ट्रैक्टरधर आजकल,
नीम-तुलसी का चौबारा आज भी है ।।
देहात से भाग रहे भले शहरों की तरफ,
गांवों में पुस्तैनी घर हमारा आज भी है ।।
नदी की धार में अब बह रहे हैं अश्क उसके,
सदी को याद करता किनारा आज भी है ।।
शहरों से फुर्सत मिले तो चले आना तुम,
‘सुरेश’ के बुढ़ापे का सहारा आज भी है ।।
— सुरेश मिश्र