जहाँ तीन शताब्दियों से हो रही है भावी अवतार की उपासना
दुनिया भर में भगवान और उनके अवतारों की पूजा आम बात है लेकिन हिन्दुतान में एक इलाका ऐसा भी है जहाँ करीब तीन शताब्दियों से उस देवता की उपासना हो रही है जो अब भी भविष्य के गर्भ में है तथा पुराणों के अनुसार जिनका अवतार होने वाला है।
राजस्थान, मध्यप्रदेश और गुजरात की लोक संस्कृतियों के त्रिवेणी संगम स्थल, दैव भूमि वाग्वर प्रदेश (राजस्थान के दक्षिण में जनजाति बहुल बांसवाड़ा एवं डूंगरपुर जिले) में ऐसे भगवान की पूजा की जा रही है जिनका कलियुग में अवतार होना है।
पौराणिक मान्यताओं और धर्म शास्त्रों के अनुसार कलियुग में पापों के भार से दबी धरती का उद्धार करने भगवान विष्णु का कल्कि अवतार होगा लेकिन त्रिकालज्ञ संत मावजी महाराज के अनुयायी पिछले तीन सौ वर्षों से ज्यादा समय से इस भावी अवतार की पूजा-अर्चना और उपासना के साथ उनकी प्रतीक्षा में जुटे हुए हैं।
इसके लिए बाकायदा कई मन्दिर बने हुए हैं जिनमें भगवान के भावी कल्कि अवतार की मूर्तियां स्थापित हैं और इनकी रोजाना पूजा-अर्चना भी होती है। दुनिया भर में आने वाले समय में अवतार लेने वाले देवता की पूजा का यह अपनी तरह का अनूठा उदाहरण ही है।
इन भक्तों की मान्यता है कि वे जिस देवता की पूजा कर रहे हैं वे ही कलियुग में भगवान विष्णु के कल्कि अवतार के रूप में अवतरित होंगे और पृथ्वी का उद्धार करेंगे। इस बारे में कल्कि पुराण व अन्य धर्म शास्त्रों में संकेत भी किया गया है।
राजस्थान के डूंगरपुर जिले के साबला गांव में आज से लगभग तीन सौ वर्ष पूर्व अवतरित भगवान श्रीकृष्ण के लीलावतार के रूप में पूज्य लोक विख्यात संत मावजी महाराज लाखों लोगों की आस्थाओं से जुड़े बेणेश्वर धाम के आद्य पीठाधीश्वर रहे हैं।
उन्होंने भगवान श्री विष्णु के निष्कलंक अवतार की भविष्यवाणी की और निष्कलंक सम्प्रदाय की नींव रखी जिसका विश्व पीठ डूंगरपुर जिले में अवस्थित साबला का हरि मन्दिर है। कलियुग में होने वाले कल्कि अवतार को ही यहां निष्कलंक अवतार के रूप में पूजा जा रहा है।
मावजी महाराज का जन्म साबला गांव में विक्रम संवत् 1771 में माघ शुक्ल पंचमी को हुआ। इसके बाद लीलावतार के रूप में मावजी का प्राकट्य संवत् 1784 में माघ शुक्ल एकादशी को हुआ। उन्हंें भगवान श्रीकृष्ण का अवतार माना जाता है। मावजी ने वृन्दावन में अधूरी रह गई रास लीला को माही, सोम एवं जाखम नदियों के बीच विशाल टापू पर पूरी की।
संत मावजी की स्मृति में आज भी बांसवाड़ा एवं डूंगरपुर जिलांे के बीच बने बेणेश्वर टापू कर हर साल माघ पूर्णिमा पर दस दिन का विशाल मेला भरता है। इसे आदिवासियों का महाकुंभ भी कहा जाता है। इस मेले में राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र सहित देश के विभिन्न हिस्सों से हर साल कोई दस लाख मेलार्थी एवं मावजी के अनुयायी हिस्सा लेते हैं।
स्वयं मावजी महाराज की भविष्यवाणी के अनुसार ‘संतन के सुख करन को, हरन भूमि को भार, ह्वै हैं कलियुग अन्त में निष्कलंक अवतार’’ अर्थात् सज्जनों को सुख प्रदान करने और पृथ्वी के सर से पाप का भार उतारने के लिए कलियुग के अंत में भगवान का निष्कलंक अवतार होगा।
अपनी भविष्यवाणियों में त्रिकालज्ञ संत मावजी महाराज ने यह भी स्पष्ट लिखा है-‘श्याम चढ़ाई करी आखरी गरुड़ ऊपर असवार, दुष्टि कालिंगो सेंधवा असुरनी करवा हाण, कलिकाल व्याप्यो घणो, कलि मचावत धूम, गौ ब्राह्मण नी रक्षा करवा बाल स्त्री करवा प्रतिपाल….।’’
मावजी की वाणी में कहा गया है कि निष्कलंक अवतार के साथ एक चैतन्य पुरुष रहेगा जो दैत्य-दानवों व चौदह मस्तकधारी कालिंगा का नाश कर चारों युगों के बंधनों को तोड़ कर सतयुग की स्थापना करेगा। इस पुरुष की लम्बाई 32 हाथ लिखी हुई है। यह अवतार गौ, ब्राह्मण प्रतिपाल होगा तथा धर्म की स्थापना करेगा। इसके बाद सर्वत्र शांति, आनन्द और समृद्धि का प्रभाव पसरने लगेगा।
हरि मन्दिर के गर्भ गृह में श्याम रंग की अश्वारूढ़ निष्कलंक मूर्ति है जो लाखों भक्तों की श्रद्धा और विश्वास धाराओं से जुड़ी है। भगवान के भावी अवतार निष्कलंक भगवान की यह अद्भुत मूर्ति घोड़े पर सवार है। इस घोड़े के तीन पैर भूमि पर टिके हुए हैं जबकि एक पैर सतह से थोड़ा ऊँचा है।
लोक मान्यता है कि यह पैर धीरे-धीरे भूमि की तरफ झुकने लगा है। जब यह पैर पूरी तरह जमीन पर टिक जाएगा तब दुनिया में महापरिवर्तन का दौर आरंभ हो जाएगा। संत मावजी रचित ग्रंथों एवं वाणी में इसे स्पष्ट किया गया है।
निष्कलंक अवतार के स्वरूप में बारे में संत मावजी के चौपड़ों में अंकित है – ‘‘ धोलो वस्त्र ने धोलो शणगार, धोले घोड़ीले घूघर माला, राय निकलंगजी होय असवार… बोलो देश में नारायण जी नु निष्कलंकी नाम, क्षेत्र साबला, पुरी पाटन ग्राम‘‘ इसमें साबला पुरी पाटन ग्राम का नाम अंकित है।
इन्हीं निष्कलंक अवतार के उपासक होने से संत मावजी के भक्त अपने उपास्य को प्रिय ऐसी ही श्वेत वेश-भूषा धारण करते हैं। निष्कलंक सम्प्रदाय के विश्व पीठ हरि मन्दिर सहित वागड़ अंचल और देश के विभिन्न हिस्सों में स्थापित निष्कलंक धामों में भी इसी स्वरूप की पूजा-अर्चना जारी है। देश के विभिन्न हिस्सों में फैले लाखों माव भक्तों द्वारा अपने उपास्य के रूप में इन्हीं निष्कलंक भगवान का पूजन-अर्चन किया जाता रहा है। वर्तमान में माव सम्प्रदाय के नवें पीठाधीश्वर एवं बेणेश्वर धाम के महन्त के रूप में गोस्वामी श्री अच्युतानंद मावजी महाराज की गादी पर विराजमान है।
यह भी एक ख़ासियत ही है कि विभिन्न निष्कलंक धाम मन्दिर के स्वरूप में हैं जबकि निष्कलंक सम्प्रदाय के विश्व पीठ हरि मन्दिर पर न तो कोई गुम्बद है और न ही मन्दिर की आकृति, बल्कि यह गुरु आश्रम के रूप में ही अपनी प्राचीन शैली में बना हुआ है।
निष्कलंक सम्प्रदाय के मन्दिर साबला, पुंजपुर, वमासा, पालोदा, शेषपुर, बांसवाड़ा, फतेहपुरा, घूघरा, पारड़ा, इटिवार, संतरामपुर आदि गांवों में अवस्थित हैं। इन सभी मन्दिरों में श्ंाख, चक्र, गदा, पद्म सहित श्वेत घोड़े पर सवार भावी अवतार निष्कलंक भगवान चतुर्भुज मूर्तियां हैं।
मावजी की पुत्रवधू जनकुंवरी ने ही बेणेश्वर धाम पर सर्वधर्म समभाव के प्रतीक विष्णु मन्दिर का निर्माण करवाया। इसके बारे में मावजी की वाणी में स्पष्ट कहा गया है – सब देवन का डेरा उठसे, निकलंक का डेरा रहेसे, अर्थात सारे धर्म स्थलों की बजाय कलियुग में अवतार लेने वाले निष्कलंक भगवान का एक मन्दिर रहेगा जहां सभी धर्मों के लोगों को आश्रय प्राप्त होगा। सभी लोग इसे प्रेम से अपना मानेंगे।
आज भावी अवतार की उपासना करने वाला निष्कलंक सम्प्रदाय अपने लाखों भक्तों के माध्यम से भगवान के कल्कि अवतार की प्रतीक्षा में है। इसके साथ ही मावजी के भक्त समाजसुधार, अछूतोद्धार, आध्यात्मिक चेतना जागृत करने और सामाजिक विकास के विभिन्न क्षेत्रों में निष्काम भाव से जुटे हुए हैं।
— डॉ. दीपक आचार्य