प्रकृति तुम्हें प्रणाम
हे प्रकृति तुम्हें प्रणाम
तुँ ही रब हो तुम भगवान
हवा जल मिट्टी से तन को बनाया
अन्तिम दिन शमशान दिखलाया
कवच बना जन जन का प्यारा
तेरी आँचल में पला तेरा सहारा
तुमने दी नीला छतरी आसमान
प्राण वायु से सींचा है प्राण
चाँद सितारे सूरज को बनाया
ज्ञान विज्ञान का पाठ है पढ़ाया
जंगल पर्वत वन तेरा है महान
हरियाली से सजाया है जहान
तुम ही रक्षक तुम ही भक्षक
जीवन दाता तुम सब के संरक्षक
तुँ है जन मानस का अन्नदाता
तुँ ही है जगत का भाग्य विधाता
तुम भगवान का रूप है दूजा
हर नर नारी ने तुमको है पूजा
तेरे हम हैं सब कर्जदार
तुम दुश्मन हो तुम हो यार
सागर नदिया तुमने बनाया
तेरे ही दर पे हम शीश झुकाया
जब जब पापी ने किया है अन्याय
तुमने बढ़ कर किया सब का न्याय
जब अधर्मी तांडव मचाया
सर्वनाश का तूँ रूप दिखाया
प्रदुषण से तेरा तन है रोया
विष बीज है जग ने बोया
पाते हैं गलती का अंजाम
हे प्रकृति तुम्हें उदय का प्रणाम
— उदय किशोर साह