बचपन की यादें
बचपन की यादें सजीं ,ले मीठे अहसास ।
बचपन के दिन थे सुखद ,सचमुच बेहद ख़ास ।।
दोस्त-यार सब थे भले,जिनकी अब तक याद।
कुछ ऊँचे अफ़सर बने,वे अब हैं आबाद।।
कुछ पढ़ने में तेज थे,कुछ बेहद कमज़ोर।
शिक्षक थे सच्चे गुरू,दिया काम पर ज़ोर।।
शाला थी प्यारी बहुत,सुंदर थे सब कक्ष।
मेरी शाला भव्य थी, नालंदा-समकक्ष।।
दिन शाला के स्वर्ण थे,मस्ती अरु आनंद।
नहीं फिक्र,चिंता रही,केवल मौज़ पसंद।।
सच,पढ़ना था कष्टमय,पर मस्ती से प्यार।
शाला के दिन यूँ समझ,माया का संसार।।
कुछ शिक्षक बेहद भले,कुछ हिटलर का रूप।
हम सबसे जो ऐंठकर ,बने अकड़ के भूप।।
पैदल ही दौड़े बहुत,शाला यद्यपि दूर।
खेल कबड्डी-दौड़ में ,रहा बहुत ही नूर।।
पिकनिक,मस्ती, खेल की,बहुत निराली शान।
गोली,चूरन का किया,हर पल ही जयगान।।
उड़ा पतंगें,मस्तियाँ,यादें सब रंगीन।
पर पीटें पापा कभी,बन जाता तब दीन।।
सीखा हमने मन लगा,करना सद् आचार।
करना आदर सीखकर,पावन बने विचार।।
शाला की यादें भली,ना भूलूँ ताउम्र।
मीठापन जो दे रहीं,बना रहीं अति नम्र।।
सोचूँ बचपन लौटकर,आ जाता इक बार।
तो कुछ दिन को ही सही,मुस्काता संसार।।
बचपन तो मासूम था,किंचित भी नहिं झूठ।
अब तो देखो सत्य का,खड़ा हुआ बस ठूँठ।।
पावन था बचपन बहुत,पर अब तो बस याद।
सब कुछ तो है अब मगर,हासिल है अवसाद।।
बचपन में तो धर्म की,कोई नहिं दीवार।
ऊँचनीच से दूर रह,करते थे सब प्यार।।
बचपन यदि ज़िन्दा रहे,तो सुखमय संसार।
अँधियारा रोये कहीं,पले नित्य उजियार।।
— प्रो. (डॉ) शरद नारायण खरे