महफिल
मयखाने में महफ़िल सजा रहे हो
जवानी की ताकत क्यों घटा रहे हो
जाम पर जाम पीये जा रहे हो तुम
भीड़ में भी तन्हा क्यों रह रहे हो
दुनिया का ख़ौफ़ तो कोसों दूर है
बस दिल मे दीवानगी का शोर है
महफ़िल लूट लेते हो जहाँ जाते हो
रात तो पीने में बीत गई अब भोर है
बीत गई पुरानी यादें जब दोस्त मिलते
केवल हाथ नहीं दिल से दिल मिलते
अब घर वालों के लिए बचा न वक़्त है
जो सभी एक दूजे से गले लग मिलते
आओ फिर दोस्ती के मायने सीखें
फिर एक दूसरे का गम बांटना सीखें
इंसानियत का सूरज डूब न जाए कहीं
आओ मन से आज सबसे जुड़ना सीखें
— डॉ. राजेश कुमार शर्मा पुरोहित