हास्य व्यंग्य

यह नोटतंत्र है

जिस दिन पार्थ चटर्जी के घर से करोड़ों रुपए बरामद हुए उस दिन से मेरे घर में महाभारत छिड़ा हुआ है I पत्नी ने मुझे कौरव दल में खड़ा कर दिया और खुद पांडव पक्ष में खड़ी होकर कलियुगी गीता का पाठ कर रही है I उसने मुझे दुनिया का सबसे निकम्मा और नालायक पति घोषित कर दिया है I कहती है कि तुमने इतना पढ़-लिखकर क्या किया ? केवल अक्षरों की फसल उगाते रहे, लेकिन माल के नाम पर ठनठनगोपाल I झारखंड प्रदेश के तीन अपढ़ विधायकों की व्यावहारिक योग्यता तो देखो I उनकी व्यावहारिक योग्यता के सामने तुम्हारी कागजी योग्यता की कोई औकात नहीं है I कैसे उन्होंने लोकतंत्र नामक खेत में नोटों की फसल उगायी है I देश का लोकतंत्र नोटों की फसल उगाने के लिए भरपूर अवसर देता है I यहाँ की विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका की जमीन में नोटों की फसल लहलहा रही है, फिर भी कुछ आउटडेटेड मानुष ईमानदारी का बिजूका बनकर खड़े रहते हैं I ऐसे अव्यावहारिक ईमानदारों की मूर्खताओं पर तो हँसा ही जा सकता है I अपना लोकतंत्र सबको खाने-चबाने और निगलने का सुनहरा मौका देता है I यहाँ रहकर भी यदि कोई मूरख खाने-निगलने से परहेज कर शाकाहारी बना रहे तो उसका जीवन अकारथ ही समझो I मेरी पत्नी ने ईमानदारी को सबसे बड़ा पाप साबित करते हुए कहा-
“मेरे तो भाग्य ही फूट गए I मेरे भाग्य में तुम्हारे जैसा निर्जला एकादशी करनेवाला महात्मा ही लिखा था I तुम्हारे जैसे अफसर से तो शर्माजी जैसा चपरासी ही अच्छा था I खाने-निगलने का भरपूर मौका मिलने के बाद भी तुमने लोकतंत्र की जमीन को बंजर ही छोड़ दिया, उसमें नोटों की खेती नहीं की, नाहक ही कागज काला करते रहे I”
मैंने पत्नी को समझाया कि ईमानदारी बड़ी चीज होती है, लेकिन पत्नी ने मुझे समझाया कि नोट बड़ी चीज है I नोट में कोई खोट नहीं है और नोट की चोट से ईमानदारी को भी पसीना आ जाता है I नोट का काला कोट पहनकर बेईमानी ठहाके लगाती है I नोट की चोट बहुत गहरी होती है I नोट से वोट मिलते हैं और वोट पाकर आदमी रातोंरात रंक से राजा बन जाता है I पत्नी ने मुझे जीवन सूत्र का बोध कराते हुए कहा-
“यह नोट कर लो कि कलियुग में नोट ही सत्य है, शेष सब मिथ्या है I नोटं सत्यम जगत मिथ्या I नोटमेव जयते I नोट में इंद्र के सिंहासन को हिला देने की असीम शक्ति है I नोट बहुत प्यारी है और नोट की महिमा न्यारी है I नोट में कोई खोट नहीं होता है I नोट को देख आदमी लहालोट हो जाता है I नोटहीनता पाप है I नोटहीन व्यक्ति केवल घृणा का पात्र है I इसलिए सज्जन पुरुष नोटपति बनने के लिए निरंतर साधना करते हैं I समाज को चरित्रहीन व्यक्ति मंजूर है, लेकिन नोटहीन व्यक्ति नहीं I नोटहीन होना सबसे बड़ा अभिशाप है I जिसके पास नोट होता है उसके व्यक्तित्व में छिद्रान्वेषी भी कोई खोट नहीं निकाल पाते I नोटपति सभी प्रकार के खोटों से ऊपर उठ जाता है I”
पत्नी मेरे लिए विपक्षी दल की नेता बन चुकी है I वह मेरे सभी तर्कों को ख़ारिज करने के मुड में रहती है I मेरी योग्यता ही मेरे लिए मुसीबत बन गई है I पत्नी ने कहा कि तुमसे अधिक बुद्धिमान तो हमारे पड़ोसी शर्माजी हैं जो कहने के लिए एक सरकारी विभाग में चपरासी हैं, लेकिन उन्होंने अपनी व्यावहारिक योग्यता से करोड़ों का साम्राज्य खड़ा कर लिया है I मेरी बीवी हाथ धोकर मेरे पीछे उसी प्रकार पड़ गई है जैसे आजकल नेताओं के पीछे ईडी पड़ी रहती है I पत्नी ने कहा कि पचास न सही, एक करोड़ ही जमा कर दिखाओ I मैंने उसे उपपत्नी और प्रेयसी का डर दिखाया I कहा कि अर्पिता जैसी कोई प्रेमिका क्या तुम बर्दाश्त बर्दास्त कर पाओगी ? उसने मेरी धमकी को हवा में उड़ा दिया I कहा कि तुम अर्पिता, अपराजिता, अंकिता, सलोनी जैसी दस प्रेमिकाएं पाल लो, कौन मना करता है, लेकिन कम से कम एक करोड़ जमा कर दिखाओ I मैंने उसे लोकतंत्र का महत्व समझाया, लेकिन वह मुझे नोटतंत्र का महत्व समझा रही थी I वह कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थी I उसने नोटतंत्र की उपयोगिता और उपयोगी नोटतंत्र पर लम्बा-चौड़ा व्याख्यान पेल दिया I कहा कि जिसे तुम लोकतंत्र कहते हो वही वास्तव में नोटतंत्र है I अब लोकतंत्र का नाम बदलकर नोटतंत्र करने का समय आ गया है I लोकतंत्र की जगह नोटतंत्र कहने में क्या बुराई है ? नोटतंत्र कहने से देश की अर्थव्यवस्था को भी गति मिलेगी I नोटतंत्र सुनने में भी अच्छा लगता है I नोटतंत्र कर्णमधुर और सामयिक नाम है I इसलिए प्रत्येक देशभक्त को नए नाम पर विचार करना चाहिए I व्यक्ति और देश के जीवन में नोट का बहुत महत्व है I भारत जैसे देश में तो नोट के बिना श्मशान घाट में भी प्रवेश नहीं मिलता है I भगवान के दर्शन के लिए मंदिर में प्रवेश के पहले दलालों को नोट भेंट करना पड़ता है I चुनाव के समय अखबारों में नोट फॉर वोट कांड सुर्ख़ियों में रहता है I नोट हमारे दलाल प्रधान देश की बुनियाद है I नोट ने देश के समूचे स्थानांतरण उद्योग को संभाल रखा है वर्ना स्थानांतरण करना-कराना कितना कठिन हो जाता I इतिहास साक्षी है कि पार्षदों, विधायकों और सांसदों की निष्ठा को बदलने में नोट ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है I सरकारों को उठाने, बैठाने और गिराने के लिए नोट से बड़ा कोई अस्त्र नहीं है I नोट ने ही लोकतंत्र के चारों खंभों को थाम रखा है अन्यथा ये सड़े खंभे कब का भरभराकर भूलुंठित हो चुके होते I चौथे खंभे अर्थात मीडिया का पूरा तंत्र नोटाश्रित है I विज्ञापन अर्थात नोट चौथे खंभे का ईंधन है और इस ईंधन के लिए मीडियाकर्मियों का आजमाया हुआ हथियार ब्लैकमेलिंग है I सुर, नर, मुनि कोई भी नोट की माया से नहीं बच पाया है I
मैंने अल्पमत में आए हुए मुख्यमंत्री की तरह पत्नी के सामने गिडगिडाते हुए कहा-‘मैं एक ईमानदार लेखक हूँ और ईमानदारी ही मेरे जीवन की एकमात्र पूंजी है I मैं तुम्हारे लिए इतने पैसे का प्रबंध नहीं कर सकता I”
पत्नी ने कहा-“मंत्री बनने से पहले हर सांसद और विधायक ईमानदार ही होता है, लेकिन मंत्री बनने के बाद उसकी ईमानदारी का तम्बू उखड़ जाता है I अपने पार्थ दादा मंत्री बनने से पहले क्या कम ईमानदार थे ? तुम जिस कमाऊ विभाग में अफसर हो उस विभाग के चपरासी भी पानी के स्थान पर घी पीते हैं I इसलिए तुम यदि ईमानदारी का बालहठ छोड़ दो तो एक करोड़ रुपए जमा करने में दो महीने भी नहीं लगेंगे I”
मैंने अपना संन्यासीनुमा आउटडेटेड अस्त्र छोड़ा-‘ईमानदारी के सुख के सामने अन्य सुखों का कोई मोल नहीं है I ईमानदारी की सुखी रोटी मन को असीम सुख से भर देती है I”
पत्नी ने मेरी ईमानदारी पर कालिख पोतते हुए कहा-‘अपनी टुच्ची ईमानदारी अपने पास ही रखो, छुटभैये लेखक भी जुगाड़ करके क्या-क्या पुरस्कार झटक रहे हैं, लेकिन तुम अपनी ईमानदारी से आज तक साहित्य का एक टुच्चा-सा पुरस्कार तो ले नहीं सके और बड़ी-बड़ी बातें करते हो I”
पत्नी ने देश-दुनिया की आर्थिकी का विश्लेषण करते हुए कहा कि नोट किसी भी देश के लिए रक्त, मांस और मज्जा है I नोट रूपी रक्त ही देश की धमनियों में प्रवाहित होता है I नोट नामक रक्त के अभाव में देश रक्ताल्पता के शिकार हो जाते हैं I नोट की कमी से श्रीलंका सहित अनेक देश दिवालिया हो गए और पाकिस्तान दिवालिया होनेवाला है I समझ में नहीं आता है कि इस नोट से भारतवासियों को इतनी घृणा क्यों है I साधु-संत समझाते हैं कि सब कुछ त्याग दो, यह माया है, एक न एक दिन इस माया से मुक्त होना ही पड़ेगा I कबीरदास ने भी इस मोह-माया को महाठगिनी कहा है I सबने समझाया है कि रुपया-पैसा त्याज्य है, असली धन चरित्र है I फिर भी नोट अर्थात माया भारतवासियों के डीएनए में इस प्रकार घुलमिल गया है जैसे दूध में पानी I कुछ वर्ष पूर्व राजस्थान में एक आयकर निरीक्षक के घर में छापा पड़ा था तो उसके पास से तीन करोड़ रुपए बरामद हुए थे I उस समय लोगों को आश्चर्य हुआ था कि एक अदने कर्मचारी के पास इतने रुपए कहाँ से आए, लेकिन अब पचास करोड़ मिलने पर भी कोई आश्चर्य नहीं होता I अब तो जनता को आदत हो गई है I जिन नेताओं और अधिकारियों के पास दस-बीस करोड़ से कम रकम मिलती है उनके पड़ोसी भी उन्हें टुच्चा समझते हैं I कुछ महीने पहले पूजा सिंघल नामक आईएएस अधिकारी के पास बीस करोड़ से अधिक रुपए बरामद हुए थे I जब आई.ए.एस. में उसका चयन हुआ था तो उसने भी कहा था कि मेरे जीवन का उद्देश्य देश और समाज की सेवा करना है I लोग अभी पूजा सिंघल की देश सेवा को भूले भी नहीं थे कि पार्थ दादा और उनकी प्रेयसी की समाज सेवा प्रकट हो गई I उसके पास से पचास करोड़ से अधिक की राशि बरामद हुई है I पार्थ दादा से बड़ा समाज सेवक और प्रतिभा पारखी कोई हो नहीं सकता है I उन्होंने असंख्य मेधावी उम्मीदवारों को प्राध्यापक बना दिया जो पांचवीं फेल थे I वास्तव में सामजिक न्याय यही है I पार्थ कृपा से वैसे लोग भी शिक्षक बन गए जिन्होंने नौकरी के लिए आवेदन भी नहीं किया था I उनकी कृपा से उनके मुहल्ले के आवारा छोकड़े, बॉडीगार्ड, मोची, धोबी और ड्राईवर प्राध्यापक बन गए I ऐसे ही प्राध्यापक सरकार की नई शिक्षा नीति को आगे बढाएँगे और शिक्षा जगत में अपना कीर्तिमान स्थापित करेंगे I

*वीरेन्द्र परमार

जन्म स्थान:- ग्राम+पोस्ट-जयमल डुमरी, जिला:- मुजफ्फरपुर(बिहार) -843107, जन्मतिथि:-10 मार्च 1962, शिक्षा:- एम.ए. (हिंदी),बी.एड.,नेट(यूजीसी),पीएच.डी., पूर्वोत्तर भारत के सामाजिक,सांस्कृतिक, भाषिक,साहित्यिक पक्षों,राजभाषा,राष्ट्रभाषा,लोकसाहित्य आदि विषयों पर गंभीर लेखन, प्रकाशित पुस्तकें : 1.अरुणाचल का लोकजीवन (2003)-समीक्षा प्रकाशन, मुजफ्फरपुर 2.अरुणाचल के आदिवासी और उनका लोकसाहित्य(2009)–राधा पब्लिकेशन, 4231/1, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 3.हिंदी सेवी संस्था कोश (2009)–स्वयं लेखक द्वारा प्रकाशित 4.राजभाषा विमर्श (2009)–नमन प्रकाशन, 4231/1, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 5.कथाकार आचार्य शिवपूजन सहाय (2010)-नमन प्रकाशन, 4231/1, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 6.हिंदी : राजभाषा, जनभाषा, विश्वभाषा (सं.2013)-नमन प्रकाशन, 4231/1, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 7.पूर्वोत्तर भारत : अतुल्य भारत (2018, दूसरा संस्करण 2021)–हिंदी बुक सेंटर, 4/5–बी, आसफ अली रोड, नई दिल्ली–110002 8.असम : लोकजीवन और संस्कृति (2021)-हिंदी बुक सेंटर, 4/5–बी, आसफ अली रोड, नई दिल्ली–110002 9.मेघालय : लोकजीवन और संस्कृति (2021)-हिंदी बुक सेंटर, 4/5–बी, आसफ अली रोड, नई दिल्ली–110002 10.त्रिपुरा : लोकजीवन और संस्कृति (2021)–मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 11.नागालैंड : लोकजीवन और संस्कृति (2021)–मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 12.पूर्वोत्तर भारत की नागा और कुकी–चीन जनजातियाँ (2021)-मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली – 110002 13.उत्तर–पूर्वी भारत के आदिवासी (2020)-मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली– 110002 14.पूर्वोत्तर भारत के पर्व–त्योहार (2020)-मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली– 110002 15.पूर्वोत्तर भारत के सांस्कृतिक आयाम (2020)-मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 16.यतो अधर्मः ततो जयः (व्यंग्य संग्रह-2020)–अधिकरण प्रकाशन, दिल्ली 17.मिजोरम : आदिवासी और लोक साहित्य(2021) अधिकरण प्रकाशन, दिल्ली 18.उत्तर-पूर्वी भारत का लोक साहित्य(2021)-मित्तल पब्लिकेशन, नई दिल्ली 19.अरुणाचल प्रदेश : लोकजीवन और संस्कृति(2021)-हंस प्रकाशन, नई दिल्ली मोबाइल-9868200085, ईमेल:- [email protected]