लघुकथा : अस्तित्व
आज मैंने अचानक उसे देख लिया। वह मैली-कुचैली साड़ी में लिपटी थी। अनमनी-सी लगी। पूछ बैठा।
” कौन हो तुम ?”
“एक दुखियारी हूँ।”
“दुख का कारण ?”
“एक हो तो बताऊँ।”
“फिर भी ?”
“अपने अस्तित्व की सुरक्षा को लेकर।”
“वो कैसे ?”
“मैं कल क्या थी, आज क्या हो गयी ; और कल का पता नहीं ?”
“अच्छा ! आखिर तुम हो कौन ?”
” गंगा।”
मैं एक शब्द नहीं बोल पाया। मुझे अपना सर झुकाना पड़ा।
— टीकेश्वर सिन्हा “गब्दीवाला”