कविता

बेकरार दिल

प्यार आँचल में छुपा कर चले आईये
बेकरार है कब से दिल पागल मेरा
पथ में कॉटे बिछे हों हजारों अगर
रुक ना जाये तुम्हारी पड़े पाँव जहॉ
दिन ढ़लने की ना कर इन्तजार सनम
अमावश सा बन गया है घर आँगन मेरा
चाँदनी की रोशनी से सँवर जायेगी
सूना पन से भरा है जिगर ये मेरा
सँभल ना रहा है दिल में गम की बोझ
खुशियों से सजा दो ये मन हो हरा
झंझावत से भरा है जीवन की सफर
नासुर बन चुका है ये जख्म है  पड़ा
ख्वाब में रोज आती हो फिर शर्म कैसी
आ गले लग जा इनायत हो तेरा
अधूरी ना रह जाये सपना अपनी
चाहे ले लो ये दौलत जमा है मेरा
तन की खुशबू से महक जाये आँगन सनम
सजाये हैं ये सपनों का महल है अब तेरा
कोई उजाड़ ना पाये ये गुलशन प्रेम की
बन जा माली तुँ मेरे उपवन हो सजा

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088