ग़ज़ल
जो हमें घुट घुट के मरने के बहाने दे गया है
फूल आके वो चिता पर कुछ सजाने दे गया
कत्ल मेरा कर दिया पर अब सजा से डर रहा है
इस लिए मेरे ही घर चाकू छिपाने दे गया है
वो नये कुछ जख्म देके दे गया खुद ही दवाई
और फिर रूमाल आंसू को सुखाने दे गया है
वो दुआओं के सितारे दे रहा है झोलियां भर
और कोई दिल दुखा के घाव,ताने दे गया है
एक वो है जो जले अंगार पर जल डालता है
और ये बुझती मशालों को जलाने दे गया है
साजिशे किसने रची मंझधार में हम डूब जाये
कोन था, पतवार जो हमको बचाने दे गया है
देख कर टूटा हुआ,बिखरा हुआ सब लूटते हैं
वो हमारा ही हमें जिन्दा दबाने दे गया है
— शालिनी शर्मा