इस चुनाव के दौर में, हवा चली विपरीत।
वोटर नब्ज देख रहा, किस की कैसी नीत।
खूब नचाया नाच है, जनता करे हिसाब।
हवा चली विपरीत है, किस का चलता दाब।
हथकंडे अपना रहे, कैसे होगी जीत।
होश सभी के उड़ रहे, हवा चली विपरीत।
हवा चली विपरीत है, ढूंढ रहे हैं तोड़।
जनता के आगे खड़े, दोनों कर को जोड़।
नेता के सर ताज की , टूट न जाए प्रीत।
देख खोफ़ से डर रहा, हवा चली विपरीत।
पैसा खूब बहा दिया, मुर्गे संग शराब।
वोटर हुआ चतुर बड़ा, कर दे काम खराब।
जितनी चौगा डाल दे, चलता टेड़ी चाल।
सारी कीलें तोड़ के, ले उड़ता है जाल।
ऊँट बैठता देखते, किस करवट की ओर।
दिल की धड़कन बढ़ रही, मिले नहीं है ठौर।
— शिव सान्याल