कविता

चलो नीड़ को चलें

“हमारे अल्फाज़,आपके जज़्बात” मंच पर विजेता कविता

 

सांझ ढल रही है,
चलो नीड़ को चलें,
प्रतीक्षा कर रहा है कोई,
चलो नीड़ को चलें.
अपनों के बिना चैन कहां?
चलो नीड़ को चलें,
सपनों के बिना न जीना यहां,
चलो नीड़ को चलें.
“पानी बचाओ” का संदेश देने,
चलो नीड़ को चलें,
पर्यावरण की शुद्धता बचाने,
चलो नीड़ को चलें.
“वृक्ष लगाओ” का देने संदेश,
चलो नीड़ को चलें,
हरियाली है धरा का वेष,
चलो नीड़ को चलें.
फिर होगा नया उजास,
चलो नीड़ को चलें,
अंधकार का होगा नाश,
चलो नीड़ को चलें.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244