चलो नीड़ को चलें
“हमारे अल्फाज़,आपके जज़्बात” मंच पर विजेता कविता
सांझ ढल रही है,
चलो नीड़ को चलें,
प्रतीक्षा कर रहा है कोई,
चलो नीड़ को चलें.
अपनों के बिना चैन कहां?
चलो नीड़ को चलें,
सपनों के बिना न जीना यहां,
चलो नीड़ को चलें.
“पानी बचाओ” का संदेश देने,
चलो नीड़ को चलें,
पर्यावरण की शुद्धता बचाने,
चलो नीड़ को चलें.
“वृक्ष लगाओ” का देने संदेश,
चलो नीड़ को चलें,
हरियाली है धरा का वेष,
चलो नीड़ को चलें.
फिर होगा नया उजास,
चलो नीड़ को चलें,
अंधकार का होगा नाश,
चलो नीड़ को चलें.