“देवदूत”
सुकेश जी आज फिर एक जरूरतमंद को अपनी संस्था का सदस्य बनाने के लिए लाए थे.
वैसे तो सुकेश जी अपने कटु अतीत को पल भर के लिए भी नहीं भुला पाते थे, पर जिस दिन किसी दुखियारे की सहायता कर पाने का सौभाग्य पाते, उनकी उन दिनों की स्मृति जीवंत हो उठती. आज भी ऐसा ही पल था!
सुकेश जी एक गैर सरकारी संगठन (NGO) के अध्यक्ष थे.
पर हमेशा से ऐसा नहीं था. वे एक छोटी-सी कुटिया में रहते थे. दो जून रोटी और पहनने के लिए कपड़ों के भी लाले थे.
एक दिन वे यों ही सड़क किनारे बैठे थे. अचानक दो सज्जन आए और उनसे वहां बैठने का कारण पूछा-
“बस, यों ही बैठा था.”
“यों ही तो कोई नहीं बैठता!” शायद उन्होंने सोचा होगा! इसलिए ही रहने-खाने आदि के बारे में जानना चाहा.
यह पता लगने पर कि उनका खाने-पीने, कपड़े-लत्ते का कोई ठिकाना नहीं है, वे उसे इसी NGO में ले आए. यहां उन्हें खाने-पीने, कपड़े-लत्ते की तो कोई किल्लत हुई ही नहीं, उन्हें अनेक लोगों का साथ-सहयोग भी मिल गया.
यहीं वे पढ़े-लिखे भी और परिश्रम, प्रतिभा और लगन से वे इसके महत्वपूर्ण सदस्य बन गए थे. समय आने पर वे उसी NGO के अध्यक्ष बन गए थे.
उनके ऑफिस में अभी भी वह तस्वीर मौजूद थी, जिसमें दो सज्जन उससे मिलने आए थे और उन्हें अपना बना लिया था.
तस्वीर के नीचे लिखा था- “देवदूत”.
सुकेश जी स्वयं भी ऐसे ही देवदूत बनना चाहते थे और बन भी गए थे.
NGO में उन्हें सर-बेटा आदि न कहकर देवदूत ही कहा जाता था.