लघुकथा

“विश्वास अमर हो गया!”

“मेरी बेटी की शादी के बाद आज अमर सपरिवार वापिस ऑस्ट्रेलिया जा रहा है. उसे विदा करते हुए मुझे ऐसा लग रहा है, मानो दूसरी बेटी की विदाई कर रहा हूं.” रमाकांत की आंखों में खुशी के आंसू थे, विश्वास के या कि आभार के, उसे खुद नहीं पता!
इन्हीं आंसुओं में प्रवाहित थी पिछले 15 साल के अद्भुत विश्वास की अनवरत धारा.
“पंद्रह साल पहले पटरी पर मुझसे अमर विश्वास की पहली मुलाकात हुई थी. तब वह 10+2 पास कर चुका था और मेडीकल में दाखिले के लिए सामान्य-सी पुस्तकों की ढेरी लेने के लिए साथ के बड़े पुस्तक भंडार में आने वाले पुस्तकों के खरीदारों से खरीदने का अनुरोध कर रहा था. उसे 5000 रुपयों की दरकार थी.”
“साहब, मेरे पिताजी होटल में कप-प्लेट धोने का काम करते हैं. आपने मेरी मदद नहीं की तो मैं भी डॉक्टरी पढ़ने के बजाय कप-प्लेट धोता नजर आऊंगा.” उसकी नजरों से उसकी बेबसी झलक रही थी.
“जाने क्या सोचकर मैंने शेयर मार्केट में लगाने हेतु लाए पांच हजार रुपये उसे दे दिए. तब मुझे विश्वास से ज्यादा पांच हजार रुपये व्यर्थ जाने की आशंका थी. उससे 4-5 साल छोटी मेरी बेटी भी है मिनी. सोचूंगा उस के लिए ही कोई खिलौना खरीद लिया. ये छोटी कक्षाओं की पुस्तकें मेरे काम की थीं ही नहीं, मैं किताबें लिए बिना ही चलने लगा.”
“साहब मैं ताउम्र आपका आभारी रहूंगा.” उसने मेरे पांव छूते हुए कहा. “एक बार एक साहब ने उस समय मुझे सड़क से उठाकर स्कूल में डाल दिया था, जब मैं मुफलिसी के दायरे में कैद था. बड़ी मुश्किल से खाने को कुछ मिलता, जिससे मैं अपनी बहिन को और आस लिए पंछियों को खिलाकर तृप्त हो जाता था. पंछी दाना लेकर मुक्त गगन में विचरण करने चले जाते, मैं मुफलिसी और मायूसी के फंदे से मुक्त नहीं हो पाता था. अफसोस मेरी बहन मुझे छोड़ गई!”
“उसकी दर्दभरी दास्तां सुनकर मैंने उसे अपना विजिटिंग कार्ड दे दिया था. मेडीकल में दाखिले की उसने मुझे सूचना दी. पढ़ाई की सूचना भी देता रहता था. मेरी बेटी मिन्नी को अपनी बहिन मानकर उसका हालचाल अवश्य पूछता.”
“एक दिन उच्च शिक्षा के लिए अपने ऑस्ट्रेलिया जाने की खबर दी, फिर शादी की खबर दी, बेटा होने की खबर भी दी. मैंने भी मिन्नी की शादी की खबर देते हुए उसे न्यौता भेज दिया था.”
“मैं शादी की तैयारियों में लगा रहा. तभी एक कारिंदा एक खत दे गया. खत क्या था, खुशियों का अनमोल पैग़ाम था. मिन्नी की शादी के लिए एक लाख डॉलर का चेक और मिनी के सुखी-सुरक्षित भविष्य के लिए शुभकामनाएं थीं.”
“ऐन टाइम से दो दिन पहले वह सपरिवार आ गया था और निहायत अपनेपन से उसने शादी में पूरे समय बड़े भाई का फर्ज निभाया. पांच हजार रुपयों में इतना अमूल्य रिश्ता मिल सकता है, आज भी विश्वास करना मुश्किल है!”
“अमर विश्वास के जाने के बाद मैं पत्नी से इतना ही कह पाया- “विश्वास अमर हो गया!”

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244