सामाजिक

संपादक की व्यस्तता को भी समझें

*पत्रकारिता के क्षेत्र में*
*रहते तत्पर दिन रात*
*निष्पक्ष रह जो कर्तव्य निभाते*
*संपादक है उनका नाम*
“सर हमारा आर्टिकल तो इतने अच्छे स्तर का होता है, फिर भी आप इसे अपने अखबार में स्थान क्यों नहीं देते हैं ।सर, अमुक रचनाकार की रचना इतनी निम्न स्तर की थी फिर भी आपने उसे अपने अखबार में स्थान दिया ।एक बार आप मेरा आलेख ध्यान से पढ़ते तो सही ।
क्या सर आपने आज के अंक में मेरे आलेख को इतना सा स्थान दिया और राजेश्वरी जी(केवल उदहारण के लिए है।किसी व्यक्ति विशेष से संबंधित नहीं है) के आलेख को मुझसे अधिक स्थान देकर प्रकाशित किया।
“मैं तो आपके अखबार में कितने समय से लिखती आ रही हूं, फिर भी आप नए नए रचनाकारों को ज्यादा तरजीह देते हैं और प्रतिदिन उनकी रचनाएं प्रकाशित करते हैं यह तो गलत बात हुई ना सर।”
सर क्या मैं कारण जान सकता हूं कि मेरी रचना आज के अंक में अंतिम पृष्ठ पर क्यों प्रकाशित की गई जबकि सुनीता जी(किसी व्यक्ति विशेष से जोड़कर न देखें) की रचना आपने मुखपृष्ठ पर इतना अधिक स्थान देकर प्रकाशित की।
“सर मैं कितने दिनों से देख रही हूं कि आप मेरी रचनाएं और आलेख प्रकाशित ही नहीं करते हैं ,क्या मैं इसकी वजह जान सकती हूं ?क्या नए रचनाकारों ने और नए साहित्यकारों ने हमारा स्थान ले लिया है? कृपया आप स्थिति से अवगत कराएं और कारण बताने की जहमत उठाएं कि नए नए लोगों को आपके अखबार में इतनी तवज्जो क्यों दी जा रही है।”
“सर पहले तो आप मेरी रचनाएं प्रतिदिन प्रकाशित करते थे परंतु कुछ समय से देख रहे हैं कि सप्ताह में दो या तीन बार ही आप मेरी रचनाओं को अपने अखबार में स्थान देते हैं ऐसा क्यों सर?”
“सर आज ही मैंने देखा कि आपके अखबार में द्विवेदी जी( किसी व्यक्ति विशेष से जोड़कर न देखें) के दो दो आलेख और मेरा एक छोटा सा आलेख सर यह तो सही नहीं है ।मैं तो इतना अच्छा लिखता हूं फिर भी आप मेरे आलेख को अपने दैनिक अखबार में बहुत ही कम जगह देकर प्रकाशित करते हैं जिस पर शायद ही किसी की नजर जाती होगी।
“सर, मैं अगर आपको मेल की जगह आपके पर्सनल नंबर पर अपनी रचनाएं और आलेख भेजूं तो क्या आप हर रोज उसे अपने अंक में प्रकाशित करेंगे।”
ऐसे ही ना जाने कितने दोषारोपण प्रत्येक दिन प्रत्येक अखबार के संपादकों को लगाए जाते होंगें। रचनाकारों को दिक्कत ना हो इसके लिए संपादकगण ने आजकल अनेक व्हाट्सएप समूह भी बना दिए हैं ताकि सभी अपनी रचनाएं वहां आसानी से भेज सके क्योंकि जरूरी नहीं है कि प्रत्येक रचनाकार एवं साहित्यकार को मेल द्वारा रचनाएं भेजने का अनुभव हो ही।बावजूद इसके रचनाकारों एवं साहित्यकारों की संपादकों के लिए शिकायतें खत्म होने का नाम ही नहीं लेती हैं ।मैं प्रतिदिन अनेक व्हाट्सएप समूहों में रचनाकारों की ऐसी अनेक शिकायतें पढ़ती हूं कि सर आपने अमुक रचनाकार की रचना तो प्रकाशित कर दी है परंतु मेरी रचना को क्यों प्रकाशित नहीं किया। साहित्यकार द्वारा दी गई ऐसी दलीले पढ़कर मन अति दुखी होता है कि क्या एक असली साहित्यकार का यही स्तर है ?क्या उसे अपनी रचनाएं प्रकाशित करवाने के लिए संपादकों के सामने यूं गिड़गिड़ाना चाहिए ।
जाहिर सी बात है कि संपादक को जिस किसी की भी रचना और आलेख प्रकाशन योग्य नजर आते हैं वे उसे अवश्य छापते हैं ,वह भी पूर्ण निष्पक्षता एवम बिना किसी भेदभाव के। संपादक का किसी साहित्यकार और रचनाकार से व्यक्तिगत रिश्ता तो शायद नहीं होता, इसलिए वे आलेख और रचनाकार की विषय वस्तु की तर्कसंगतता और समसामयिकता को महत्व देकर ही उन्हें अपने अंक में प्रकाशित  करते हैं ।
एक संपादक होने के नाते संपादक को बहुत बड़ी जिम्मेदारी का निर्वाह करना होता है ।उनके पास ना जाने कितने ही रचनाकारों और साहित्यकारों की रचनाएं एवं आलेख प्रतिदिन पहुंचते हैं ।उनमें से बेहतरीन रचनाएं निकालना बहुत ही टेढ़ी खीर होती है।इस मुश्किल काम को ईमानदारी से पूरा कर एवम अपनी जिम्मेदारी को बखूबी से निभा वे जिस प्रकार संपादन का कार्य करते हैं, उसके लिए उनकी जितनी सराहना की जाए कम है ।इतनी मेहनत और लगन से प्रत्येक आलेख को पढ़ना ,उसकी कमियों को दूर करना ,वर्तनी अशुद्धि दूर कर संशोधित करना एवं रचनाकारों के विचारों को ज्यों का त्यों प्रकाशित करने की इतनी बड़ी जिम्मेदारी का निर्वहन संपादक जिस खूबसूरती के साथ करते हैं उसके लिए उन्हें सम्मानित किया जाना चाहिए ना कि उन पर रचनाएं ना छापने का दोषारोपण किया जाना चाहिए।
 रचनाएं आज नहीं तो कल, कल नहीं तो परसों जरूर छपेंगी। संपादकों की व्यस्तता को ध्यान में रखकर हम सभी रचनाकारों को थोड़ा धैर्य के साथ काम लेना होगा ।संपादक भी इंसान होते हैं और उनकी भी अपनी कुछ सीमाएं होती हैं जिसके भीतर रहकर ही उन्हें अपना काम करना पड़ता है। और शायद ही कोई संपादक किसी अमुक रचनाकार से ईर्ष्या या जलन रखता होगा एवं उनकी रचनाओं को प्रकाशित ना करने का भाव शायद ही उनके मन में होता होगा।
प्रतिदिन संपादक गण को निष्पक्ष रहकर समाज के सामने एक ठोस उदाहरण प्रस्तुत करना होता है तथा पत्रकारिता के क्षेत्र में उन्हें अनेक प्रकार की जिम्मेदारियों को निभाना पड़ता है ताकि वह लोगों को समाज की असली तस्वीर दिखा सकें एवं समाज की बेहतरी के लिए अपना योगदान दे सकें
संपादक के पद पर बैठा व्यक्ति केवल संपादन का ही कार्य नहीं करता, अपितु उसे एक पूरी संस्था को साथ लेकर चलना होता है जिससे संस्था की साख पर कोई उंगली ना उठा सके एवं निष्पक्ष पत्रकारिता की जिम्मेदारी वह बखूबी निभा सके।
*पत्रकारिता के काम को*
*न समझे इतना आसान*
*रात दिन करते मेहनत जब कड़ी*
*समाज में होता तब इनका सम्मान*
— पिंकी सिंघल

पिंकी सिंघल

अध्यापिका शालीमार बाग दिल्ली