वहम
अंधकार को वहम है जग में
कोई उसे मिटा ना पायेगा
पर रवि की किरण जब आती
अंधेरा स्वतः ही छुप जायेगा
लाख दरिया उड़ेल दो खेतों में
समय पर ही फसल उग पायेगा
जब तक पूरा ना होता है समय
मिहनत कोई काम ना आयेगा
झूठा को सच्चा कहने से
क्या झूठा सच हो जायेगा
सत्य अपने पथ पे खड़ा है
वो सत्य मार्ग ही अपनायेगा
अंहकारी कितना भी अकड़ दिखा ले
मानवता की गीत कभी ना गायेगा
झूठा अहं झुकने नहीं कभी देता
अन्त टुट बिखर ही जायेगा
कोई कुछ भी कहता है कह ले
कोई यह समझ ना अब पायेगा
रब ने जो तस्वीर रच दी है
हर पल दर्पण में दीख जायेगा
करनी व कथनी में फर्क है
मूरख समझ ना पायेगा
गुढ़ बात समझने हेतु
अकल कहाँ से लायेगा
लाख बदरी सूरज को ढँक ले
सूरज को हरा ना क्भी पायेगा
दीन दुःखी को जिसने सताया
पीढ़ी दर पीढ़ी वो आँसू बहायेगा
— उदय किशोर साह