हमें अपने बच्चे ख़ुद सम्हालने होंगे
हम किसी पर अपनी मामूली सम्पत्ति तक नहीं छोड़ते और अनमोल बच्चे छोड़ देते हैं। है न आश्चर्यजनक! लेकिन सच यही है और इसका दुष्परिणाम भी हमारे समक्ष है। आज के कलयुगी दौर में सभी कुछ इतना मिलावटी, पाखंडयुक्त व खोखला है कि किसी पर आसानी से विश्वास करना संभव नहीं रहा है। समाज आज पाखंडी, मज़हबी जालसाज़ों, अंधे क़ानून के रक्षकों जो सिर्फ़ नाम के रक्षक मन के भक्षक हैं, और दो मुखौटे वाले लोगों से घिरा है। समाज में झूठे, जालसाज़ लोग जो अपने मक़सद को पूरा करने के लिये किसी भी स्तर तक गिर जाते हैं। भोले भाले बच्चों को, युवा लड़कियों को अपने जाल में आसानी से फँसा कर शिकार बनाने वाले कुकुरमुत्ते से फैल गए हैं। इसका अर्थ यह नहीं की समाज सिर्फ़ इन नकारात्मक हैवानों से ही घिरा है। अच्छे सकारात्मक मददगार लोग भी हैं किंतु उनका प्रतिशत बहुत कम है। आजकल लोग दूसरों के मामले में पड़कर ख़ुद फँसना भी नहीं चाहते। आज का समाज जिस अंध-आधुनिकरण के मार्ग पर चल पड़ा है उससे हमारे बच्चे सबसे ज़्यादा प्रभावित हैं। जिस तरह की फ़िल्मे और सिरीज़ चल पड़ी हैं उसमें कोई फ़िल्टर, कोई रोक नहीं बची। ऐसे अंधे आपाधापी वाले दौर में, गंदा मज़हबी खेल भी चल रहा है। वासना के पुजारी भी खुलेआम घूम रहे हैं जो नज़रे गड़ाये बैठे हैं कि अगला शिकार किस लड़की का किया जाए! कौन सी बात न मानने पर तेज़ाब छिड़क दिया जाए, किसे लव जिहाद में फाँस लिया जाए। इन सभी बिंदुओं को अब अनदेखा नहीं किया जा सकता।
बच्चे हमारे हैं, हमारी ज़िम्मेदारी हैं, हमारे कर्णधार हैं, इनकी अभिरक्षा का दायित्व भी हमारा ही है। आज ज़रूरी हो गया है कि बच्चों को घर में माता- पिता के द्वारा ही नैतिक शिक्षा का ज्ञान दिया जाए। अनेक बिंदुओं पर उनके ११ साल के होने तक ही सब समझाना अनिवार्य है। अनेक कोणों को लेकर उनसे सरल भाषा में ११ बिंदुओं पर खुलकर चर्चा करें जैसे-
१)- जब तक कोई अनजान व्यक्ति सही न साबित हो, उसे गलत ही माने।
२)- अजनबी कौन है, उससे कैसे बात करें?
३)- असुरक्षित जगहों की पहचान करवायें।
४)- किसी आपातकालीन स्थिति में कैसे स्थिति को कंट्रोल करें।
५)- ना कहना भी सिखायें- कहाँ कहा जा सकता है। कोई अजनबी मदद माँगे या बुलायें तो क्या कहें और क्या न कहें।
६)- माँ- बाप से कभी कुछ न छिपायें, वे उनके सबसे अच्छे दोस्त हैं।
७)- फ़ैमिली कोड बनायें जिससे बच्चा किसी अजनबी के साथ न जाये।
८)- सेफ़ (सुरक्षित) स्थानों की चर्चा कर बच्चों को बतायें कि वे कहाँ कहाँ रह सकते हैं, उनके बिना।
९)- घर की अहम जानकारी बाहर के अजनबियों को न दें।
१०)- प्राइवेट पार्ट्स के बारे में बतायें ।
११)- अजनबियों से होने वाले सभी संभावित ख़तरों और उससे बचने के बारे में बतायें।
अजनबियों से बात नहीं करनी चाहिए लेकिन आज के बदलते परिवेश में बच्चों को अजनबियों से उनकी सुरक्षा के लिए सिर्फ इतना ही बताना काफी नहीं है। जिन बच्चों को बचपन में ही उनकी सुरक्षा के बेसिक नियम बताये जाते हैं जैसे कि अजनबियों से कैसे बात करनी है, या कब नहीं करनी है, ऐसे बच्चे किसी अजनबी से खतरे की स्थिति का बेहतर तरीके से सामना कर पाते है।
बच्चों को अपने साथ लेजाकर उनके लिए असुरक्षित जगहों की पहचान कराइये जहाँ पर कोई अजनबी उन्हें नुकसान पहुँचा सकता है जैसे – पार्किंग लॉट, पार्क के कोने, घने पेड़ों वाली जगह, स्कूल बंद होने के बाद अकेले क्लास में रुकना, घरों के पीछे की संकरी और अँधेरी गलियां आदि।
उन्हें ये भी बताइये कि बड़े लोग हमेशा बड़े लोगों से ही हेल्प मांगते हैं। अगर कोई कार उनके पास आकर रुके और उसमें बैठा व्यक्ति किसी का पता पूछे तो दूर हट जाइये. अगर कोई आदमी पार्क में अपने कुत्ते को ढूंढ़ने में मदद मांगे तो मना कर दें।
विशेषकर अगर ऐसा करने में बच्चों को पैसे या चॉकलेट का लालच दें तो तुरंत वहां से दूर चले जाएँ।
शुरू से ही बच्चों को सिखाया जाता है कि वे बड़े लोगों से आदर और विनम्रता से बात करें. ऐसे में वे किसी अजनबी को साफ ना कहने में हिचक सकते हैं. इसलिए उन्हें बताइये कि एकदम अनजान आदमी या औरत को ना कहने में कुछ भी गलत नहीं है।
बच्चों के अपने ऐसे मित्रों के घर के बारे में बताइये जहाँ वे इमरजेंसी में जा सकते हैं या उन्हें फ़ोन कर सकते हैं।
बच्चे को यह भी विश्वास दिलाइये कि उससे कुछ गलत भी हो जाये या कोई भी उनके साथ कुछ गलत हरकत करे तो भी आप को सब कुछ बताएं और आप इसके बाद भी उनसे उतना ही प्यार करते रहेंगे जितना पहले करते रहे हैं। बच्चों को संस्कार युक्त करना होगा, उसके लिए आवश्यक है पहले हम खुद संस्कारित हों।कुछ अपने हिस्से की ईमानदारी रखें। उनसे प्यार से बात करें। उनके सच्चे अर्थों में दोस्त बने। अगर बच्चों को संस्कारित नहीं करेंगे, तब तक किसी को भी दोष देने का कोई मतलब नहीं है৷ हमें बच्चों को यह समझाना होगा कि परिवार वालों की मर्जी के बिना कोई भी काम या फ़ैसला ग़लत हो सकता है। माता – पिता चाहें उस समय गलत लगें किंतु उनसे अधिक कल्याणकारी और उनकी जीवन की हर तरह से सुरक्षा माता- पिता सोच लेते हैं इसलिए उनके इच्छा के ख़िलाफ जाकर अगर शादी का निर्णय लेते हो या लिव इन रिलेशन रखते हो , तो उसके परिणाम कुछ भी हो सकते हैं ৷ यौवनावस्था में बच्चे किसी के प्रति भी जल्दी आकर्षित हो जाते हैं उन्हें हर कोई बस अच्छा ही अच्छा दिखता है। बालिग होने पर उन्हें कानूनी संरक्षण भी मिलता है ৷ एक ऐसी स्थिति भी आ जाती है कि सब कुछ जानने के बाद भी बच्चे घर वालों की बात नहीं मानते, जिसकी परिणति अक्सर नुक़सानदायक या दुखद ही होती है ৷ अतः हमे बच्चों को मज़हबी भेड़ियों से ही नहीं, बल्कि सबसे बचने की सलाह देने की जरूरत है, क्योंकि कुछ अपवादों को छोड़कर अपने मन से शादी करने के परिणाम अक्सर खराब ही होते हैं, चाहे वह अपनी जाति, गैर जाति, अपने धर्म या दूसरे धर्म के साथ ही क्यों न हों।
बच्चों को बीती घटनाओं को समझाकर भी सावधान व सतर्क करना चाहिए। बच्चों के अच्छे मित्र बनें, उनके साथ समय बितायें और साथ ही थोड़ी आजादी के साथ उनके लिए अपनी लक्ष्मण भी खींचें। आख़िरकार बच्चे हमारे हैं। हमारा दायित्व है उन्हें सम्हालना, संस्कारित करना, समाज के लव जिहादियों, दरिंदों और वासना के भेड़ियों से बचाना। आज के समाज में हमे ही बनना है उनका सुरक्षा कवच।
— डॉ अवधेश कुमार अवध
— डॉ प्रतिभा गर्ग