गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

न सोच पत्थर चलाने के काम आता है।।
आईना चेहरा दिखाने के काम आता है
भूलता ही नहीं हजार कोशिशें कर ली,
वो जो इक शख्स भुलाने के काम आता है।
खून सब अपने ही पी जाते अक्सर,
जो भी बचता है ज़माने के काम आता है।।
गुल अगर सूख गया है तो कोई बात नहीं,
ये किताबों में दबाने के काम आता है।।
उनकी तारीके महफ़िल मे गये तब जाना,
मिरा दिल भी तो जलाने के काम आता है।।
ज़िंदगी शुक्रिया तेरा के तूने गम ही दिये,
ये ग़म भी अश्क बहाने के काम आता है।।
कश्तियां ही डुबोना सिर्फ फितरत में नहीं,
ये तूफां दीया बुझाने के काम आता है।।

— शेषमणि शर्मा शेष

शेषमणि शर्मा 'इलाहाबादी'

जमुआ मेजा प्रयागराज उतर प्रदेश