गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

जो होकर भी न हो, उसका होना कैसा
नाम के रिश्ते से शिकवा कैसा, रोना कैसा

किस किस को कितनी गलतियां गिनाता फिरूँ
हर गुनाह अपने सिर ले लिया, जुबां पिरोना कैसा

झूठ इस कद्र न बोल, कि खुद पर भी शर्म आए
कल की आहट अभी दिख रहे, आज बोना कैसा

कहना चाहता था बहुत कुछ, कह न सका
मर्यादा सामने आ गयी, होश का खोना कैसा

सच कहने की न हिम्मत रही, न ही साहस
होंठ सिल लिए, आँसुओं से मन भिंगोना कैसा

जब अहसास एक साथ आए, कुछ होने का
बिखर जाने का और कुछ भी नहीं होने जैसा

समझ लेना, गहराई से अंतः कहीं कुछ टूटा है
आने वाले कल की सोच, अब बिलोना कैसा

नई पीढ़ी, नई सोच, नया जमाना है ‘श्याम’
मेरे दिल में बसता है, एक शख्स पुराना जैसा

चाहता कुछ और था, कर कुछ और रहा हूँ
जर्रा जर्रा ढह गया,अब खुशी को ढोना जैसा

न कोई रोकने वाला होगा, न टोकने वाला होगा
एक दिन जहां से चला जाऊंगा, तब रोना कैसा

श्याम सुन्दर मोदी

शिक्षा - विज्ञान स्नातक, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से प्रबंधक के पद से अवकाश प्राप्त, जन्म तिथि - 03•05•1957, जन्म स्थल - मसनोडीह (कोडरमा जिला, झारखंड) वर्तमान निवास - गृह संख्या 509, शकुंत विहार, सुरेश नगर, हजारीबाग (झारखंड), दूरभाष संपर्क - 7739128243, 9431798905 कई लेख एवं कविताएँ बैंक की आंतरिक पत्रिकाओं एवं अन्य पत्रिकाओं में प्रकाशित। अपने आसपास जो यथार्थ दिखा, उसे ही भाव रुप में लेखनी से उतारने की कोशिश किया। एक उपन्यास 'कलंकिनी' छपने हेतु तैयार