चोर – चोर मौसेरे भाई
जहाँ तक मेरी जानकारी की दूरदृष्टि जाती है,चोरी एक सदाबहार कला के रूप में विख्यात रही है। चोरियों के भी तो अनेक प्रकार हैं। केवल धन की चोरी ही चोरी नहीं होती। और भी चोरियों के विविध रूप हैं।धन की चोरी से पहले भी अनेक प्रकार की चोरियाँ होना एक साधारण – सी बात मानी जाती रही है। दिल की चोरी उनमें प्रमुख स्थान रखती है।यदि ऋषि पाराशर नाव से नदी पार कराती हुई निषाद कन्या सत्यवती के दिल की चोरी नहीं करते तो महाभारत जैसे महान ग्रंथ की रचना से संसार वंचित हो जाता।संसार मात्र इसी से वंचित नहीं होता, वरन पुराणों के पारायण से भी अनभिज्ञ रह जाता।यह दिल की चोरी का ही सुपरिणाम है कि महर्षि वेद व्यास जी का अवतरण इस धरा- धाम में हो सका। इस प्रकार चोरियों की भी महान उपलब्धियों से संसार लाभान्वित होता रहा है और आज भी वह परम्परा अनवरत रूप से प्रवहमान है।
निश्चित रूप से यह नहीं कहा जा सकता कि किस – किस वस्तु या अवस्तु की चोरी हो सकती है !चोरी – चोरी नजरें मिलती हैं ,तो क्या कुछ नहीं होता? ये सभी चोरियाँ सूक्ष्म प्रकार की हैं। इस प्रकार सामान्य रूप रूप से चोरियों को दो कोटियों में वर्गीकृत किया जा सकता है:1.सूक्ष्म चोरी 2.स्थूल चोरी। सूक्ष्म चोरी वह है; जिसमें किसी भौतिक वस्तु के स्थान पर कोई अदृष्ट और सूक्ष्म भाव या प्रभाव चोरी हो जाता है। मैंने यह भी पढ़ा है कि कवि लोग भी चोरी करते हैं। लेकिन उनका चौर्य- चातुर्य भी सराहना का सुपात्र हो सम्मानित हो जाता है।यहाँ पर यह उल्लेख करना भी अनिवार्य है कि हमारी सुप्रसिद्ध चौंसठ कलाओं में एक कला चोरी भी है।इसलिए कवियों की विचार और भावों की चोरी को सराहा जाता है। वाह !वाह!! ही की जाती है। हाँ, इतना आवश्यक है कि यदि चोरी पकड़ ली जाती है तो निंदा – उपाहन से पाहन-प्रहार कर चोर की मातमपुर्सी में भी कमी नहीं छोड़ी जाती। भाषा- शैली की चोरी कुछ ज्यादा ही ख़तरनाक है, क्योंकि इससे पकड़े जाने का ख़तरा भी उतना ही अधिक है। कवि -चोर या लेखक – चोर को इस चोरी से सर्वथा बचना ही श्रेयस्कर है। तभी उसके सिर को खल्वाट होने से बचाया जा सकता है।
आज के युग में कर- चोरी, जी. एस. टी.- चोरी, ए. टी. एम. -चोरी, डाटा- चोरी जैसी अनेक अत्याधुनिक चोरियों की भरमार हो गई है। ज्यों-ज्यों देश , दुनिया और आदमी का विकास हो रहा है ,चोरियों के क्षेत्र का विस्तार भी इतना अधिक ही गया है कि जब तक इस विषय पर मैं एक शोध प्रबंध पूर्ण करूँगा, तब तक नए नए प्रकार की चोरियों का अविष्कार हो जाएगा। परिणाम यह होगा कि चौर्य शोध प्रबंधों का धारावाहिक क्राइम पेट्रोल के धारावाहिकों की तरह अनन्त काल तक चलता रहेगा।
सामान्यतः संसार में सर्वश्रेष्ठ ,सर्व लोकप्रिय और सर्वत्र व्याप्त चोरी का रूप ‘धन की चोरी’ है। जो अपने विविध आयामों में अवतरित होकर चोरों की कृपा का पात्र बना रहा है।धन की चोरी गबन,उत्कोच, कमीशन,छूट, अपहरण,सेंध,सुविधा-शुल्क , राहजनी,लूट,डकैती आदि अपने विविध रूपों में देखी औऱ पाई जाती है। अब ककड़ी चोर तो ककड़ी ही चुराएगा न! कोई बैंक में डाका तो नहीं डाल सकता! चोरों और चोरी का भी अपना अपना स्तर है। तथाकथित बड़े लोग यदि ककड़ी चुराते पकड़े गए तो उनका हीन भाव उनकी नाक ही न काट डालेगा ! अब बड़े लोगों की गिनती तो मैं करा नहीं सकता, क्योंकि उनसे सभी डरते हैं। मैं भी डरता हूँ।क्योंकि वे बड़े स्तर के चोर हैं औऱ यदि वे मेरे यहाँ इस कार्य के लिए यदि पधार गए तो मेरे घर में कविताओं के कुछ कागज़ों के ढेर देखकर वापस रिक्त हस्त ही जाना पड़ेगा।
अखबारों में बड़ी बड़ी चोरियों के चर्चे आम हैं। पर बड़े चोरों की नब्ज पर हाथ भी लगाने की हिम्मत भला किसकी हो सकती है? नस्तर की तो बात ही करना बेकार है।हाँ,इतना अवश्य है कि जब बड़े से बड़े चोरों का बुरा वक्त आ जाता है तो नस्तर तो क्या बिस्तर ही बंध जाता है। पर क्या कीजिए यहाँ तो सारे के सारे चोर मौसेरे ‘बहन -भाई’ हैं। ये बहन-भाई का पावन रिश्ता क्या- क्या गुल खिलायेगा !देखते जाइए। सब देख रहे हैं। हम भी देख रहे हैं। और देखते रह जाएँगे और ‘चोर -चोरनी’ अपनी चोरी का पवित्र औचित्य चतुराई से सिद्ध कर ये गए! वो गए!हम सब किसी सुपरिणाम की प्रत्याशा में टापते रह जायेंगे। औऱ चोर – चोर मौसेरे भाई के साथ -साथ एक औऱ पवित्र मुहावरा हमारे हिंदी मुहावरा कोश की अभिवृद्धि कर देगा: “चोर – चोरनी मौसेरे भाई-बहिन”। अब कौन किसकी पूँछ उठाए, जब इधर से उधर को देखा तो सब मादा ही गए पाए! करते रहिए विरोध ! कौन सुनता गए नक्कारखाने में तूती की आवाज ? जब देश दुनिया के सारे कुँओं में ही भाँग के बोरे के बोरे घुले पड़े हों ,तो बेहोश तो होना ही है। आज उसी बेहोशी का दौर चल रहा है औऱ करोड़ों की चोरी खुलेआम हो चुकी है। पर यह कहावत भी कुछ गलत नहीं फ़रमाती कि ऊँट की चोरी निहुरे – निहुरे नहीं होती।
— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम्’