दोहे “जीवन के हैं मर्म”
दोहे “जीवन के हैं मर्म”
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मात-पिता को तुम कभी, मत देना सन्ताप।
नित्य नियम से कीजिए, इनका वन्दन-जाप।।
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आदिकाल से चल रही, यही जगत में रीत।
वर्तमान ही बाद में, होता सदा अतीत।।
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जग में आवागमन का, चलता रहता चक्र।
अन्तरिक्ष में ग्रहों की, गति होती है वक्र।।
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जिनके पुण्य-प्रताप से, रिद्धि-सिद्धि का वास।
उनका कभी न कीजिए, जीवन में उपहास।।
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शीतकाल में बदन को, ताकत देती धूप।
वस्त्र हमेशा पहनिए, मौसम के अनुरूप।।
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यौवन जब ढलने लगे, तभी घेरते रोग।
वृद्धावस्था में कभी, मत करना हठयोग।।
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बुरा कभी मत सोचिए, करना मत दुष्कर्म।
सेवा और सहायता, जीवन के हैं मर्म।।
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(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)