गज़ल
लोग कहते हैं बहुत मगरूर होता जा रहा हूँ,
जैसे-जैसे थोड़ा मैं मशहूर होता जा रहा हूँ,
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वक्त ने मुझको सिखा दी है परख इंसान की,
मतलबी लोगों से बस अब दूर होता जा रहा हूँ,
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बादशाह जैसा था पाला माँ ने बचपन में मुझे,
बड़ा होकर दिन-ब-दिन मजदूर होता जा रहा हूँ,
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दिन भर की मेहनत से लगा है टूटने मेरा बदन,
बिन पिए ही मैं नशे में चूर होता जा रहा हूँ,
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रोज़ घट जाता है और एक दिन मेरी उम्र से,
कतरा-कतरा जलने को मजबूर होता जा रहा हूँ,
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आभार सहित :- भरत मल्होत्रा।