ग़ज़ल
तुम हो नहीं मगर दिल, करता है इंतजार।
लहरा के तुमको आँचल, पुकारे बार-बार।
बस गई तस्वीर ऐसे, कल्ब -ओ- जिगर में,
के बंद आंखों से भी, होने लगा दीदार।
आती है जब हवाएं तेरे दर को चूम के,
खुशबू से महक जाते मेरे दर-ओ- दीवार।
कानों में गुनगुना के ये करती है गुफ्तगू
कहती है तेरी खातिर वो भी हैं बेकरार।
लहरा गई है बर्क सी तेरा हाल जान के,
तेरी बेकरारी पे ये दिल भी हुआ बेदार।
— पुष्पा अवस्थी “स्वाती”